चना ज़ोर गरम और पकौड़े प्याज़ के ...
चार दिन मे सूखेंगे कपड़े ये आज के ...
आलस और खुमारी बिना किसी काज के ...
टर्राएँगे मेंढक फिर बिना किसी साज़ के ...
बिजली की कटौती का ये मौसम आया है ...
हमारे घर आँगन आज सावन आया है ...
भीगे बदन और गरम चाय की प्याली ...
धमकी सी गरजती बदली वो काली ...
नदियों सी उफनती मुहल्ले की नाली ...
नयी सी लगती वो खिड़की की जाली ...
छतरी और थैलियों का मौसम आया है ...
हमारे घर आँगन आज सावन आया है ...
निहत्थे से पौधों पे बूँदो का वार ...
हफ्ते मे आएँगे अब दो-तीन इतवार ...
पानी के मोतियों से लदा वो मकड़ी का तार...
मिट्टी की खुश्बू से सौंधी वो फुहार ...
मोमबत्तियाँ जलाने का मौसम आया है...
हमारे घर आँगन आज सावन आया है ...!
सावन में पेड़ों पर पड़ने वाले झूले तो अब गुजरे ज़माने की बातें हो गई। नई पीढ़ी अब झूलों का आनंद या तो घर में लेती है या पार्कों में।
(चित्र में : बिटिया अपूर्वा झूले का आनंद लेती हुई)
Akanksha Yadav @ http://shabdshikhar.blogspot.com/
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