आपका समर्थन, हमारी शक्ति

शुक्रवार, 22 अप्रैल 2016

एक पत्नी का रोजनामचा

बेवक़ूफ़
वो
रोज़ाना की तरह
आज फिर ईश्वर का नाम लेकर उठी.
किचिन में आई
और चूल्हे पर चाय का पानी चढ़ाया.
फिर
बच्चों को जगाया
ताकि वो स्कूल के लिए तैयार हो सकें.
फिर
उसने किचिन में
जाकर चाय निकाली
अपने सास ससुर को देकर आयी,
फिर
उसने बच्चों का
नाश्ता तैयार किया
और बीच-बीच में बच्चों को ड्रेस पहनाई,
और
फिर बच्चों को
नाश्ता कराकर उनके
स्कूल का लंच तैयार करने लगी.
इस बीच
बच्चों के स्कूल का
रिक्शा आ गया..
वो
बच्चों को
रिक्शा तक छोड़ कर आई.
वापस आकर
मेज़ से बर्तन इकठ्ठा किये.
इसी बीच
पतिदेव की आवाज़ आई कि मेरे कपङे निकाल दो.

उनको
ऑफिस जाने लिए
कपड़े निकाल कर दिए,
और
वापस आकर
फिर पति के लिए
नाश्ता तैयार करने लगी.
अभी
पति के लिए
उनकी पसन्द का
नाश्ता अण्डा और पराठे तैयार करके टेबिल पर लगाया ही था,
कि
छोटी ननद आई
और ये कहकर कि भाभी मुझे आज कॉलेज जल्दी जाना है,
नाश्ता उठा कर ले गयी.
वो
फिर एक
हल्की सी मुस्कराहट के साथ वापस किचिन में आई.
इतने में
देवर की आवाज़ आई
भाभी नाश्ते तैयार हो गया क्या..?
"जी भाई अभी लायी..!"
ये कहकर
उसने फिर से
अपने पति और देवर के लिए अॉमलेट और पराठे तैयार करने शुरू किये.
"लीजिये नाश्ता तैयार है..!"
पति और देवर ने
नाश्ता किया और अखबार पढ़कर अपने-अपने ऑफिस के लिए निकल चले.
उसने
मेज़ पर से
खाली बर्तन समेटे
और सास-ससुर के लिए
उनका परहेज़ का नाश्ता तैयार करने लगी..
दोनों को
नाश्ता कराने के बाद
फिर बर्तन इकट्ठे किये
और उनको भी किचिन में लाकर धोने लगी..
इसबीच
सफाई वाली भी आ गयी.
उसने
बर्तन का काम
सफाई वाली को सौंप कर खुद बेड की चादरें वगैरह इकट्ठा करने पहुँच गयी.
और फिर
सफाई वाली के साथ
मिलकर सफाई में जुट गयी.
अब तक 11 बज चुके थे.
अभी
वो पूरी तरह
काम समेट भी ना पायी थी कि कॉलबेल बजी.

दरवाज़ा खोला
तो सामने बड़ी ननद
और उसके पति व बच्चे सामने खड़े थे.
उसने
ख़ुशी-ख़ुशी
सभी को आदर के साथ घर में बुलाया,
और
उनसे बातों में
उनके आने की ख़ुशी का इज़हार करती रही.
ननद की
फ़रमाइश के मुताबिक़
नाश्ता तैयार करने के बाद
अभी वो ननद के पास बैठी ही थी...
कि
सास की आवाज़ आई
"बहू खाने का क्या प्रोग्राम है..?"
उसने घडी पर
नज़र डाली तो 12 बज रहे थे.

उसकी
फ़िक्र बढ़ गयी
वो जल्दी से फ्रिज़ की तरफ लपकी
और
सब्ज़ी निकाली
फिर से दोपहर के
खाने की तैयारी में जुट गयी.
खाना
बनाते-बनाते
अब दोपहर का एक बज चुका था.
बच्चे
स्कूल से आने वाले थे.
लो बच्चे आ गये...
उसने
जल्दी-जल्दी
बच्चों की ड्रेस उतारी
और उनका मुँह-हाथ धुलवाकर उनको खाना खिलाया.
इसी बीच
छोटी ननद भी
कॉलेज से आ गयी
और देवर भी आ चुके थे.
उसने
सभी के लिए
मेज़ पर खाना लगाया
और खुद रोटी बनाने में लग गयी.
खाना खाकर
सब लोग फ्री हुए
तो उसने मेज़ से फिर
बर्तन जमा करने शुरू कर दिये.
इस वक़्त तीन बज रहे थे.
अब
उसको
खुद को भी
भूख का एहसास होने लगा था.
उसने
हॉट-पॉट देखा
तो उसमे कोई रोटी नहीं बची थी.
उसने
फिर से
किचिन की ओर रुख किया .
तभी
पतिदेव घर में
दाखिल होते हुये बोले कि
आज
देर हो गयी
भूख बहुत लगी है
जल्दी से खाना लगा दो.
उसने
जल्दी-जल्दी
पति के लिए खाना बनाया
और
मेज़ पर
खाना लगा कर
पति को किचिन से गर्मागर्म रोटियाँ बनाकर
ला-ला कर देने लगी.
अब तक चार बज चुके थे..
अभी वो
खाना खिला ही रही थी
कि पतिदेव ने कहा कि आ जाओ तुम भी खालो.
उसने
हैरत से
पति की तरफ देखा
तो उसे ख्याल आया कि
आज मैंने सुबह से कुछ खाया ही नहीं.
इस ख्याल के
आते ही वो पति के
साथ खाना खाने बैठ गयी.
अभी
पहला निवाला
उसने मुँह में डाला ही था की आँख से आँसू निकल आये.
पतिदेव ने
उसके आँसू देखे
तो फ़ौरन पूछा कि
तुम क्यों रो रही हो...?
वो खामोश रही
और सोचने लगी कि
इन्हें
कैसे बताऊँ कि
ससुराल में कितनी मेहनत के बाद ये रोटी का निवाला नसीब होता है
और लोग
इसे मुफ़्त की रोटी कहते हैं.
पति के
बार बार पूछने पर
उसने सिर्फ इतना कहा
कि
कुछ नहीं
बस ऐसे ही आँसू आ गये.
पति
मुस्कुराये और बोले
तुम
औरतें भी
बड़ी "बेवक़ूफ़" होती हो.
बिना वजह
रोना शुरू करदेती हो.
........... 
क्या वो 
वाकई बेवक़ूफ़ होती हैं..?

ज़रा सोचिये..
उन्हें 
ज्यादा कुछ नहीं
सहानुभूति और स्नेह 
के बस दो मीठे बोल चाहिये.

अपनी पत्नी को सम्मान दीजिए.... 

(यह सन्देश रूपी रचना वाट्सएप पर मिली।  किसने लिखा, इसका जिक्र नहीं ... पर जिसने भी लिखा दिल्लगी से लिखा.....साधुवाद ।  अच्छा लगा, अत: आप सभी के साथ शेयर कर रही हूँ)

- आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 
Akanksha Yadav @ http://shabdshikhar.blogspot.in/

गुरुवार, 21 अप्रैल 2016

हिंदी ब्लागिंग की 13वीं वर्षगाँठ : हिन्दी ब्लॉगिंग में एक परिवार के तीन सदस्यों ने बनाया कीर्तिमान

आज हिंदी ब्लागिंग की 13 वीं वर्षगाँठ है। यद्यपि वर्ष 1999 में आरम्भ हुआ ब्लॉग वर्ष 2016 में 17 साल का सफर पूरा कर चुका है। वर्ष 2003 में यूनीकोड हिंदी में आया और तद्नुसार हिन्दी ब्लॉग का भी आरम्भ हुआ। यद्यपि इससे पूर्व विनय जैन ने 19 अक्टूबर 2002 को अंग्रेजी ब्लॉग पर हिन्दी की कड़ी सर्वप्रथम आरंभ कर इसका आगाज किया था, पर पूर्णतया हिन्दी में ब्लॉगिंग आरंभ करने का श्रेय आलोक को जाता है, जिन्होंने 21 अप्रैल 2003 को हिंदी के प्रथम ब्लॉग ’नौ दो ग्यारह’ से इसका आगाज किया। यहाँ तक कि ‘ब्लॉग‘ के लिए ‘चिट्ठा‘ शब्द भी उन्हीं का दिया हुआ है। आज उन सभी लोगों को याद करते हैं और उन्हें धन्यवाद देते हैं, जिन्होंने हिंदी ब्लागिंग को इस मुकाम तक पहुँचाया !! 

हैप्पी बर्थ-डे टू हिन्दी ब्लॉगिंग......इस अवसर पर उत्तर प्रदेश और राजस्थान के विभिन्न अख़बारों में प्रकाशित खबरों को भी आप सभी के साथ शेयर कर रही हूँ। 

               *************************************************************
न्यू मीडिया के इस दौर में ब्लाॅगिंग लोगों के लिए अपनी बात कहने का सशक्त माध्यम बन चुका है। राजनीति की दुनिया से लेकर फिल्म जगत, साहित्य से लेकर कला और संस्कृति से जुड़े तमाम नाम ब्लॉगिंग से जुडे हुए हैं।  आज ब्लाॅग सिर्फ जानकारी देने का माध्यम नहीं बल्कि संवाद, प्रतिसंवाद, सूचना विचार और अभिव्यक्ति का भी सशक्त ग्लोबल मंच है।

यदयपि ब्लागिंग का आरंभ  1999 से माना  जाता है पर हिंदी में ब्लागिंग का आरम्भ वर्ष 2003 में हुआ। आज हिंदी में करीब एक लाख से ज्यादा ब्लॉग हैं और विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोग बखूबी इसके माध्यम से सक्रिय हैं। इनमें एक परिवार ऐसा भी है, जिसके सभी सदस्य हिंदी ब्लॉगिंग से जुड़े हुए हैं।  चर्चित हिंदी ब्लॉगर एवं सम्प्रति राजस्थान पश्चिमी क्षेत्र, जोधपुर के  निदेशक  डाक सेवाएँ कृष्ण कुमार यादव बताते हैं कि पूर्णतया हिन्दी में ब्लाॅगिंग आरंभ करने का श्रेय आलोक को जाता है, जिन्होंने 21 अप्रैल 2003 को हिंदी के प्रथम ब्लॉग ’नौ दो ग्यारह’ से इसका आगाज किया। सार्क देशों के सर्वोच्च 'परिकल्पना ब्लॉगिंग सार्क शिखर सम्मान' से सम्मानित एवं नेपाल, भूटान और श्रीलंका सहित तमाम देशों में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर्स सम्मेलन में सक्रिय भागीदारी निभाने वाले श्री यादव जहाँ अपने साहित्यिक रचनाधर्मिता हेतु "शब्द-सृजन की ओर" (http://kkyadav.blogspot.in/) ब्लॉग लिखते हैं, वहीं डाक विभाग को लेकर "डाकिया डाक लाया" (http://dakbabu.blogspot.in/) नामक उनका ब्लॉग भी चर्चित है। श्री यादव का पूरा परिवार ही हिंदी ब्लॉगिंग से जुड़ा हुआ है।

वर्ष 2015 में हिन्दी का सबसे लोकप्रिय ब्लाॅग 'शब्द-शिखर' (http://shabdshikhar.blogspot.com) को चुना गया और इसकी मॉडरेटर आकांक्षा यादव को  हिन्दी में ब्लाॅग लिखने वाली शुरूआती महिलाओं में गिना जाता है। ब्लॉगर दम्पति कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा यादव को  'दशक के श्रेष्ठ ब्लॉगर दम्पति',  'परिकल्पना ब्लॉगिंग सार्क शिखर सम्मान' के अलावा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा नवम्बर, 2012 में ”न्यू मीडिया एवं ब्लाॅगिंग” में उत्कृष्टता के लिए ”अवध सम्मान से भी विभूषित किया जा  चुका  है। इस दंपती ने वर्ष 2008 में ब्लाॅग जगत में कदम रखा और  विभिन्न विषयों पर आधारित दसियों ब्लाॅग का संचालन-सम्पादन करके कई लोगों को ब्लाॅगिंग की तरफ प्रवृत्त किया और अपनी साहित्यिक रचनाधर्मिता के साथ-साथ ब्लाॅगिंग को भी नये आयाम दिये।

नारी सम्बन्धी मुद्दों पर प्रखरता से लिखने वालीं आकांक्षा यादव का मानना है कि न्यू मीडिया के रूप में उभरी ब्लाॅगिंग ने नारी-मन की आकांक्षाओं को मुक्ताकाश दे दिया है। आज एक लाख से भी ज्यादा हिंदी ब्लाॅग में लगभग एक तिहाई ब्लाॅग महिलाओं द्वारा लिखे जा रहे  हैं। बकौल आकांक्षा, ये महिलाएं अपने अंदाज में न सिर्फ ब्लाॅगों पर सहित्य-सृजन कर रही हैं  बल्कि तमाम राजनैतिक-सामाजिक-आर्थिक मुददों से लेकर घरेलू समस्याओं, नारियों की प्रताड़ना से लेकर अपनी अलग पहचान बनाती नारियों को समेटते विमर्श, पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण से लेकर  पुरूष समाज की नारी के प्रति दृष्टि, जैसे तमाम विषय ब्लाॅगों पर चर्चा का विषय बनते हैं।

ब्लॉगर दम्पति यादव की 9 वर्षीया सुपुत्री अक्षिता (पाखी) को भारत की सबसे कम उम्र की ब्लॉगर माना जाता है, जो कि वर्तमान में हैप्पी आवर्स स्कूल, जोधपुर में कक्षा 4 की छात्रा हैं। अक्षिता की प्रतिभा को देखते हुए भारत सरकार ने  वर्ष 2011 में उसे "राष्ट्रीय बाल पुरस्कार" से सम्मानित किया, वहीं पिछले वर्ष अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन, श्री लंका में उसे  "परिकल्पना कनिष्ठ सार्क ब्लॉगर सम्मान" से भी सम्मानित किया गया। इसके 'पाखी की दुनिया'  (http://pakhi-akshita.blogspot.in/) ब्लॉग को 100 से ज्यादा देशों में देखा-पढा जाता है और लगभग 450 पोस्ट वाले इस ब्लॉग को 260 से ज्यादा लोग नियमित अनुसरण करते हैं।

हिंदी ब्लॉगिंग की दशा और दिशा पर पुस्तक लिख रहे चर्चित ब्लॉगर कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि,  आज हिन्दी ब्लाॅगिंग में हर कुछ उपलब्ध है, जो आप देखना चाहते हैं। हर ब्लॉग का अपना अलग जायका है। यहाँ खबरें हैं, सूचनाएं हैं, विमर्श हैं, आरोप-प्रत्यारोप हैं और हर किसी का अपना सोचने का नजरिया है। तेरह सालों के सफर में हिंदी ब्लागिंग ने एक लम्बा मुकाम तय किया है। आज हर आयु-वर्ग के लोग इसमें सक्रिय हैं, शर्त सिर्फ इतनी है कि की-बोर्ड पर अंगुलियाँ चलाने का हुनर हो ।










बुधवार, 20 अप्रैल 2016

शाबास दीपा कर्माकर : ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली पहली भारतीय महिला जिमनास्ट बनीं

मन में हौसला हो तो सब कुछ सम्भव है। इसे चरितार्थ कर दिखाया है त्रिपुरा की 22 वर्षीया दीपा कर्माकर ने, जो ओलम्पिक के लिए क्वालिफाई करने वाली पहली भारतीय महिला जिमनास्ट बन गई हैं। अब वह रियो  डि जनेरियो ओलिंपिक में जिम्नास्टिक्स में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगी। पहली भारतीय महिला के अलावा वह 52 साल लंबे अंतराल बाद खेलों के महासमर के लिये क्वालीफाइंग करने वाली पहली भारतीय जिमनास्ट भी हैं। देश को स्वंतत्रता मिलने के बाद 11 भारतीय पुरुष जिमनास्ट ने ओलंपिक में शिरकत की थी, जिसमें से दो ने 1952, तीन ने 1956 और छह ने 1964 में भाग लिया था। लेकिन वह ओलंपिक के लिये क्वालीफाई करने वाली पहली भारतीय महिला जिमनास्ट हैं। 18 अप्रैल को इस इतिहास को रचने वाली दीपा को रियो ओलंपिक के लिये क्वालीफाई करने वाली महिला कलात्मक जिमनास्ट में व्यक्तिगत क्वालीफायर की सूची में 79वीं जिमनास्ट सूचित किया गया है।

ओलंपिक के लिए क्‍वालिफाई करने के कुछ ही घंटों बाद दीपा ने रियो ओलंपिक खेलों की परीक्षण प्रतियोगिता में वाल्टस फाइनल में गोल्ड मेडल जीता। 22 साल की दीपा 14.833 प्वॉइंट के अपने बेस्ट प्रदर्शन के साथ महिला वाल्टस फाइनल में टॉप पर रहीं। दीपा ने इस मुकाम तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत की। दीपा के पिता दुलाल कर्माकर इस बात को लेकर परेशान थे कि दीपा को बंगाली मीडियम स्‍कूल में पढ़ाएं या फिर अंग्रेजी स्‍कूली में। उनकी इस दुविधा को भी दीपा ने ही दूर किया था। दीपा ने पिता से कहा था कि अंग्रेजी स्‍कूल में जाऊंगी तो जिम्‍नास्टिक की प्रेक्टिस नहीं कर पाऊंगी। उस समय दीपा की उम्र महज सात साल की थी। इस वजह यह थी कि बांग्‍ला स्‍कूल जिम्‍नास्टिक्‍स हॉल का उपयोग करने की इजाजत देती थी। दुलाल कर्माकर बताते हैं कि,’हम परेशान थे कि हम उसे अंग्रेजी से दूर रखकर सही कर रहें है या नहीं। लेकिन वह जिद पर अड़ी रही।’ उनके पिता के अनुसार अंग्रेजी सीखने का मोह छोड़कर दीपा ने सबसे बड़ा त्‍याग किया। 

अभी राजनीतिक विज्ञान में मास्‍टर्स कर रही दीपा  शुरुआत के दिनों में दीपा जिम्‍नास्‍ट को लेकर अनमनी थी। वह एक ही स्‍टेप बार-बार करके खुश नहीं थी लेकिन उसने खेल को नहीं छोड़ा। दीपा के पिता भारतीय खेल प्राधिकरण में वेटलिफ्टिंग के कोच हैं। वे कहते हैं’वह जिद्दी थी। अगर उसने ठान लिया कि कुछ पाना है तो उसे पाए बगैर वह बैठेगी नहीं। पहले नेशनल चैंपियनशिप, फिर इंडिया टीम, फिर कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स और अब ओल‍ंपिक।’ ओलंपिक के लिए क्‍वालिफाई करने के बाद दीपा ने घर पर मैसेज भेजा,’ हम क्‍वालिफाई हो गया।’ ओलंपिक क्‍वालिफिकेशन के लिए दीपा ने अक्‍टूबर और अप्रैल में हुए नेशनल चैंपियनशिप्‍स को भी छोड़ दिया। 2010 दिल्‍ली कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स में पदक न जीत पाने के बाद दीपा कई दिनों तक रोती रही थी। 2014 में पदक जीतकर उसने पिछली बार की गलती की भरपाई की। 
-आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 

शनिवार, 9 अप्रैल 2016

फोर्ब्स एशिया की सूची में शीर्ष पर नीता अंबानी, अरुंधती भट्टाचार्य सहित आठ भारतीय महिलाएं

नारी सशक्तिकरण के लिए महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण बहुत जरूरी है।  जब तक नारी अपने पैरों पर खड़ी होकर आर्थिक रूप से स्वावलम्बी नहीं होगी, समाज की मानसिकता जस की तस रहेगी। आज के दौर में तमाम महिलाएँ देश-दुनिया में कारपोरेट जगत, बैंकिंग जगत से लेकर विभिन्न आर्थिक समृद्धि वाले क्षेत्रों में न सिर्फ बखूबी कार्य कर रही हैं, बल्कि सफलता की नई इबारत भी लिख रही हैं। इसी क्रम में रिलायंस फाउंडेशन की प्रमुख नीता अंबनी को फोर्ब्स ने एशियाई की सबसे शक्तिशाली महिला कारोबारी करार दिया है जो इस क्षेत्र की 50 प्रमुख उद्यमियों की सूची में शीर्ष पर हैं। इस सूची में आठ भारतीय महिलाओं ने स्थान बनाया है।

स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया की अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक अरुंधती भटेटाचार्य को 2016 की एशिया की 50 शक्तिशाली महिला कारोबारी की सूची में दूसरा स्थान दिया गया है, जिसमें चीन, इंडोनेशिया, आस्ट्रेलिया, वियतनाम, थाइलैंड, हांगकांग, जापान, सिंगापुर, फिलिपीन और न्यूजीलैंड की प्रभावशाली महिलाएं शामिल हैं।

अंबानी और भट्टाचार्य के अलावा भारत की छह महिलाओं ने इसमें स्थान बनाया है जिनमें एमयू सिग्मा की मुख्य कार्यकारी अंबिगा धीरज (14), वेलस्पन इंडिया की मुख्य कार्यकारी दिपाली गोयनका (16), ल्यूपिन की मुख्य कार्यकारी विनीता गुप्ता (18), आईसीआईसीआई बैंक की प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्यकारी चंदा कोचर (22), वीएलसीसी हेल्थकेयर की संस्थापक एवं उपाध्यक्ष वंदना लूथरा (25) और बायोकॉन की संस्थापक और चेयरमैन एवं प्रबंधन निदेशक किरण मजूमदार शॉ (28) शामिल हैं।

फोर्ब्स ने कहा, इस सूची में स्वीकार किया गया है कि कारोबारी दुनिया में महिलाएं अपनी जगह बना रही हैं लेकिन स्त्री-पुरुष असमानता बरकरार है। महिलाएं यह समझने की बेहतर स्थिति में हैं कि उन्हें नेतृत्व की स्थिति में आने और वहां बने रहने के लिए क्या करना होगा।

फोर्ब्स ने 52 वर्षीय नीता को भारतीय उद्योग जगत की प्रथम महिला करार देते हुए कहा कि वह राजगद्दी की सबसे करीबी ताकत है और उन्होंने रिलायंस इंडस्ट्रीज में अपनी बढ़ती हैसियत के कारण इस सूची में पहली बार स्थान बनाया है। रिलायंस इंडस्ट्रीज के प्रमुख उनके पति और भारत के सबसे अमीर व्यक्ति मुकेश अंबानी हैं।
-आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 

लैंगिक अन्याय के विरुद्ध मुहिम लाई रंग : शनि शिंगणापुर मंदिर के 400 साल के इतिहास में पहली बार महिलाओं को पूजा करने की इजाजत


लैंगिक न्याय के लिए आंदोलन अंतत: रंग लाया और महाराष्ट्र के अहमदनगर स्थित शनि शिंगणापुर मंदिर में नवरात्र के पहले दिन 8 अप्रैल, 2016 को 400 साल पुरानी परंपरा टूट गई। महिलाओं ने मंदिर के चबूतरे पर चढ़कर पूजा अर्चना की। 

गौरतलब है कि शनि शिंगणापुर मंदिर शनिदेव को समर्पित है, शनिदेव हिंदू मान्यता में शनि ग्रह हैं। इस मंदिर की सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार महिला श्रद्धालुओं को खुले गर्भगृह पर जाने की इजाजत नहीं थी। इस मंदिर में दीवार और छत नहीं है। पावन भाग के रूप में पांच फुट का एक विशाल काला पत्थर है और उसकी शनि देव के रूप में पूजा की जाती है। आंदोलन शुरू होने के बाद मंदिर प्रबंधन ने पिछले दो महीनों में पुरुषों के लिए विशेष पूजा की पद्धति पर रोक लगा दी। अभी तक पुरुष और महिलाएं दोनों ही मूर्ति से समान दूरी पर प्रार्थना करते थे। केवल पुरोहितों को ही गर्भगृह में जाने की इजाजत है। महिलाओं के प्रवेश पर रोक संबंध सदियों पुरानी परंपरा का उल्लंघन करते हुए पिछले साल एक महिला ने शनि शिंगणापुर मंदिर में प्रवेश करने और पूजा करने की कोशिश की थी तब से  मंदिरों के गर्भगृह में महिलाओं के प्रवेश के मुद्दे पर बहस तेज हो गयी। इस घटना के बाद मंदिर समिति ने सात सुरक्षाकर्मियों को निलंबित कर दिया था और ग्रामीणों ने शुद्धिकरण किया था। उसके बाद तृप्ति देसाई की अगुवाई में भूमाता ब्रिगेड ने शनि मंदिर में इस पाबंदी का उल्लंघन करने के लिए अभियान शुरू किया और लैंगिक न्याय के लिए आंदोलन का निश्चय प्रकट किया। 

बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी इस मामले पर फैसला सुनाया था कि पूजा करने से महिलाओं को नहीं रोका जा सकता। इस आदेश के बाद भी मंदिर ट्रस्ट महिलाओं को पूजा करने के अधिकार के खिलाफ अड़ा हुआ था। शनि शिंगणापुर मंदिर ट्रस्ट ने शुक्रवार सुबह घोषणा की कि वे लोग महिलाओं को पूजा करने से नहीं रोकेंगे। इस तरह सुप्रसिद्ध शनि शिंगणापुर मंदिर के 400 साल के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब महिलाओं को पूजा करने की इजाजत मिली।

महिलाओं को मंदिरों में प्रवेश के अधिकार की लड़ाई लड़ रहीं भूमाता ब्रिगेड की प्रमुख तृप्ति देसाई ने कहा है कि यह तो केवल अभी शुरुआत है। जिन-जिन मंदिरों में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है उनके खिलाफ उनका संघर्ष जारी रहेगा। उन्होंने बताया कि 13 अप्रैल को कोल्हापुर के महालक्ष्मी मंदिर में वे लोग प्रवेश के लिए संघर्ष करेंगी।

आशा की जानी चाहिए कि जिस देश में मातृ-शक्ति की पूजा की जाती है और उसे देवी का दर्जा दिया जाता है, वहाँ इस प्रकार की लैंगिक भेदभाव की परम्परा को सभ्य समाज बर्दाश्त नहीं करेगा और आगे बढ़कर नई इबारत लिखेगा !!
-आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2016

नव वर्ष की हर्षित बेला...


नव वर्ष की हर्षित बेला पर,
खुशियां मिले अपार। 
यश, कीर्ति, सम्मान मिले, 
और बढे सत्कार। 
शुभ-शुभ रहे हर दिन हर पल,
शुभ-शुभ रहे विचार। 
उत्साह बढे चित चेतन में,
निर्मल रहे आचार। 
सफलतायें नित नयी मिले,
बधाई बारम्बार। 
मंगलमय हो काज आपके,
सुखी रहे परिवार। 

नवरात्र के शुभ पर्व पर हार्दिक शुभकामनायें .... जरा इस पर भी गौर कीजिएगा !!



नव वर्ष विक्रम संवत 2073 और चैत्र नवरात्रि पर्व पर  हार्दिक शुभकामनाएं !!

आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 

बुधवार, 6 अप्रैल 2016

बिटिया आई, ऑफिस में नई रौनक लाई : बिटिया @ वर्क

बेटियां परिवार ही नहीं, समाज, देश और दुनिया के भी सुनहरे भविष्य की गंगोत्री हैं। आज स्कूल और कॉलेज में पढ़ रहीं बेटियों में से ही कुछ और मदर टेरेसा, इंदिरा गांधी, किरण बेदी, कल्पना चावला, सानिया मिर्जा निकलकर नई रोशनी बिखेरेंगी। इसी सद्भावना को ध्यान में रखकर राजस्थान पत्रिका समूह ने अपना अनूठा अभियान 'बिटिया@वर्क' आयोजित किया। इसके तहत 5 अप्रैल, 2016 को  कई अभिभावक 8 से 19 साल तक की अपनी बेटियों को लेकर अपने दफ्तर या कार्यस्थल पर लेकर पहुंचे। यह एक तरह से बेटी को आगे बढ़ाने, नया संसार दिखाने, अपने कर्मस्थल से परिचित कराने का दिन था।  अभिभावक के कामकाज से रू-ब-रू होना बेटियों के लिए नया अनुभव था। उनके चेहरों पर उत्साह था, रोमांच भी। बेटियों ने भी ये जाना कि मम्मी-पापा कितनी मेहनत करते हैं, तब जाकर उनका लालन-पालन कर पाते तरह से औपचारिक कार्यक्रमों, भाषणों से परे पत्रिका के इस अभियान ने बेटियों के लिए इस दिन को यादगार बना दिया। कुछ बेटियों ने तो अपने माता-पिता की तरह प्रशासनिक अधिकारी, डॉक्टर, इंजीनियर,  टीचर बनने तक का संकल्प लिया। माता-पिता के लिए भी बेटियों को अपने काम से रू-ब-रू कराने का अलग तरह का अनुभव था।

इसी क्रम में हमारी प्यारी बेटियाँ अक्षिता (9) और अपूर्वा (5) भी 'राजस्थान पत्रिका' की पहल बिटिया @ वर्क के तहत अपने पापा श्री कृष्ण कुमार यादव के साथ उनके ऑफिस पहुँचीं, जो कि राजस्थान पश्चिमी क्षेत्र, जोधपुर के निदेशक डाक सेवाएं हैं। इस अवसर पर राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से सम्मानित नन्ही ब्लॉगर अक्षिता ने राजस्थान पत्रिका को बताया कि पापा के ऑफिस जाकर और वहाँ की कार्य प्रणाली देखकर बहुत अच्छा और प्रेरणादायी लगा। मैं भी बड़ी होकर पापा जैसी ही आई.ए.एस. परीक्षा देकर ऑफिसर बनना चाहती हूँ।  पापा के ऑफिस में फाइलों के निपटान से लेकर तमाम प्रोजेक्ट्स की ऑनलाईन मॉनिटरिंग देखी। ऑफिस आकर देखा कि पापा कैसे लोगों की समस्या का समाधान करते हैं।  इस शानदार पहल के लिए पत्रिका का आभार। अपूर्वा की उम्र भले ही 5 वर्ष हो, पर यह भी अपना  रोमांच और उत्साह दिखाने से नहीं चूकी। 





-आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 
Akanksha Yadav : http://shabdshikhar.blogspot.com/

मंगलवार, 5 अप्रैल 2016

जम्मू कश्मीर में महबूबा मुफ़्ती : अब तक भारत में बनीं 16 महिला मुख्यमंत्री

नारी सशक्तिकरण के इस दौर में भी राजनीति में महिलाओं की भागीदारी उंगलियों पर गिनी जा सकती है । भारतीय राजनीति में एक लम्बे समय से राजनैतिक स्तर पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने की बात चल रही है, पर व्यवहारिक स्तर पर इसमें सक्रियता नजर नहीं आती। तभी तो लोकसभा और विधानमंडलों में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने वाला बिल अपनी सच्ची नियति को प्राप्त नहीं कर पाया है।   

     भारतीय राजनीति में कुछेक महिलाएं शीर्ष पर स्थान बनाने में कामयाब हुई हैं। देश की राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, विपक्ष की नेता, कैबिनेट मंत्री और विभिन्न राज्यों में मुख्यमंत्री व राज्यपाल तक महिलाएं पदासीन रही हैं। अगर संसदीय राजनीति में महिलाओं के योगदान की बात करें, तो कुछ चेहरे अनायास ही सामने आ जाते हैं। ये वो चेहरे हैं, जो राजनीति में नारी-सशक्तिकरण के नए प्रतिमान गढ़ती नजर आती हैं। इनके बिना भारत की संसदीय राजनीति में महिला-शक्ति के परचम लहराने का इतिहास अधूरा है। इनके लिए महिला होने का मतलब सिर्फ घर-गृहस्थी से नहीं, बल्कि देश चलाने से भी था। यही वजह है कि आज भी राजनीति की बात होती है, तो इनका नाम स्वतः जुबान पर आ जाता है।  

भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल,  प्रथम महिला केन्द्रीय मंत्री (स्वास्थ्य मंत्री) राजकुमारी अमृत कौर, प्रथम महिला विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, प्रथम महिला रेल मंत्री ममता बनर्जी, प्रथम महिला सांसद  राधाबाई सुबरायण, राज्यसभा की प्रथम महिला उपसभापति  नजमा हेपतुल्ला, लोकसभा की प्रथम महिला अध्यक्ष मीरा कुमार, लोकसभा में प्रथम महिला प्रतिपक्ष नेता  सुषमा स्वराज, प्रथम महिला राज्यपाल सरोजिनी नायडू (उत्तर प्रदेश, 1947),  प्रथम महिला मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी (उत्तर प्रदेश, 1963),  प्रथम  मुस्लिम महिला मुख्यमंत्री  सैयद अनवरा तैमूर (असोम, 1980),  प्रथम दलित महिला मुख्यमंत्री  मायावती (उत्तर प्रदेश, 1995), प्रथम महिला विधायक मुत्तुलक्ष्मी रेड्डी, किसी  राज्य की विधान सभा की प्रथम महिला स्पीकर शन्नो देवी जैसी तमाम महिलाओं ने समय-समय पर भारतीय राजनीति को नई ऊँचाइयाँ दी हैं। अभी तक भारत में 20 महिलाएं राज्यपाल बन चुकी हैं, जिसमें राजस्थान की पहली महिला राज्यपाल प्रतिभा पाटिल देश की पहली महिला राष्ट्रपति बनीं। 

विभिन्न राज्यों की बात करें  4 अप्रैल 2016 को जम्मू कश्मीर की मुख़्यमंत्री के रूप में महबूबा मुफ़्ती के शपथ लेने के बाद  मुख्यमंत्री के रूप में अब तक 16 महिलाओं ने गद्दी संभाली है। जम्मू और कश्मीर की तेरहवीं और एक महिला के रूप में महबूबा मुफ़्ती राज्य की प्रथम मुख्यमंत्री हैं। महबूबा मुफ्ती से पूर्व वर्ष 1980 में सैयदा अनवरा तैमूर किसी भरतीय राज्य (असम) की पहली मुस्लिम मुख्यमंत्री बनी थीं। इस प्रकार वे देश के किसी राज्य की दूसरी मुस्लिम मुख्यमंत्री हैं। फ़िलहाल, 16 महिला मुख्यमंत्रियों की बात की जाये तो इनमें सुचेता कृपलानी (उत्तर प्रदेश), नंदिनी सत्पथी (ओडिशा), शशिकला काकोदर (गोवा), सैयद अनवरा तैमूर (असोम), जानकी रामचंद्रन (तमिलनाडु), जयललिता (तमिलनाडु), मायावती (उत्तर प्रदेश), राजिंदर कौर भट्टल (पंजाब), राबड़ी देवी (बिहार), सुषमा स्वराज (दिल्ली), शीला दीक्षित (दिल्ली), उमा भारती (मध्य प्रदेश), वसुंधरा राजे (राजस्थान), ममता बनर्जी (प. बंगाल) और  आनंदीबेन पटेल (गुजरात), महबूबा मुफ़्ती (जम्मू कश्मीर) शामिल हैं। इस समय राजस्थान, प. बंगाल, तमिलनाडु, गुजरात और अब जम्मू कश्मीर सहित पाँच राज्यों में महिला मुख्यमंत्री पदासीन हैं।  अभी भी ऐसे तमाम राज्य हैं, जहाँ महिला मुख्यमंत्री नहीं बन सकी हैं।  जब तक राजनीति में महिलाओं की संख्या नहीं बढ़ेगी और उन पर विश्वास करते हुए उन्हें मुख्य भूमिका में नहीं रखा जायेगा, तब तक नारी सशक्तिकरण अधूरा ही कहा जायेगा !!
-आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 
Akanksha Yadav : http://shabdshikhar.blogspot.in/

सोमवार, 4 अप्रैल 2016

जीका वायरस की गुत्थी सुलझाकर देविका सिरोही ने रचा विश्व पटल पर इतिहास

बेटियों को मौका मिले तो अपनी बुलंदियों के झंडे गाड़ने में समय नहीं लगता। उत्तर प्रदेश में मेरठ  में जन्मी होनहार वैज्ञानिक देविका सिरोही ने विश्व पटल पर इतिहास रचकर देश का सिर गर्व से ऊंचा किया। देविका सिरोही ने जीका वायरस की संरचना की खोज की है।  इनकी इस सफलता से घातक बीमारी के लिए प्रभावी उपचार के विकास में सफलता मिली है। संयुक्त राज्य अमेरिका में जीका वायरस के  संरचना की खोज करने वाली  देविका सात सदस्यीय वैज्ञानिक टीम की  सबसे कम उम्र की शोधार्थी हैं,  जिसने पहली बार जीका वायरस की संरचना की गुत्थी सुलझाई है। 29 साल की देविका  ने 31 मार्च 2016 को परडयू यूनिवर्सिटी लाफयिट यूएसए में शोध के अंतर्गत जी वायरस की खोज की है। 

गौरतलब है कि पिछले कई महीनों से जीका वायरस में विश्व के कई देशों में खौफ फैला रखा था। इस जीका वायरस की संरचना की खोज के बाद इस वायरस की वैक्सीन बनाना काफी आसान हो जायेगा। जीका, डेंगू की भांति बेहद खतरनाक और अजन्मे बच्चे के मस्तिष्क को हानि पहुंचाने वाला वायरस है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने  भी वैश्विक स्तर पर जीका  वायरस को जनता के स्वास्थ्य के लिए आपातकाल घोषित किया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार यह प्राणघातक बीमारियों को उत्पन्न करने वाले मच्छरों से संबंधित है। 

सिरोही ने अपनी स्कूलिंग मेरठ से पूरी की है।  उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से बायोकेमिस्ट्री में ग्रेजुएशन और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, मुंबई से मास्टर की डिग्री हासिल की है।   देविका के पिता डॉ एसएस सिरोही और माता रीना सिरोही देविका सहित सारी दुनिया उनकी इस उपलब्धि पर गौरवान्वित है। विश्व के सभी टीवी चैनलों पर देविका छाई हुई हैं। 

(Indian doctoral student and  Part Of The US Team That Decoded Zika Virus, Devika Sirohi (second from left) along with her colleagues at Purdue University)

अपनी सफलता पर देविका का कहना है कि इस खोज के पीछे कठिन मेहनत का हाथ है. उन्होंने कहा कि वायरस का पता लगाने में उनकी टीम को महीनों लग गए. इस विषय पर रिसर्च करने के दौरान वो मुश्किल से ही कभी दो-तीन घंटों की नींद ले पाती थी. उन्हें भरोसा है कि वायरस की संरचना का पता लग जाने के बाद इस बीमारी के इलाज के रास्ते भी निकल आएंगे. सिरोही बताती हैं, 'जब मैं अमेरिका आई थी तो यह नहीं पता था कि मुझे यहां इतनी बड़ी उपलब्धि मिलेगी. मुझे यहां अपने डॉक्टरल रिसर्च को शुरू किए पांच साल बीत चुके हैं. इस साल के अंत तक मैं अपना थीसेस जमा कर दूंगी. जीका की संरचना का पता लगाने की पूरी प्रक्रिया चुनौतियों से भरी थी. अब जब उसकी संरचना का पता चल गया है तो इसकी रोकथाम के रास्ते भी जरूर निकल आएंगे.'
 -आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 
Akanksha Yadav@ http://shabdshikhar.blogspot.in/




बुधवार, 23 मार्च 2016

हर रंग में प्यार अपार..

रंग - गुलाल से रंग दे तन - मन !
ऐसी होली हो मन - भावन !!


हर रंग में प्यार अपार।
रंगो का त्यौहार है होली
इसमें रंग हजार।
प्रेम का रंग है सबसे पक्का
कैसे भी न छूटे।
एक बार रंग जाय संग फिर
जीवन भर न टूटे।
तुम्हे मुबारक प्रेम रंग की
छैल छबीली होली।
खेलो रंग पिया से अपने
जी भर के करो ठिठोली।
हम सब की ओर से
मुबारक आप सभी को होली !!





रंग रंग राधा हुई, कान्हा हुए गुलाल
वृंदावन होली हुआ सखियाँ रचें धमाल
होली राधा श्याम की और न होली कोय
जो मन रांचे श्याम रंग, रंग चढ़े ना कोय
नंदग्राम की भीड़ में गुमे नंद के लाल
सारी माया एक है क्या मोहन क्या ग्वाल
आसमान टेसू हुआ धरती सब पुखराज
मन सारा केसर हुआ तन सारा ऋतुराज
बार बार का टोंकना बार बार मनुहार
धूम धुलेंडी गाँव भर आँगन भर त्योहार
फागुन बैठा देहरी कोठे चढ़ा गुलाल
होली टप्पा दादरा चैती सब चौपाल
सरसों पीली चूनरी उड़ी़ हवा के संग
नई धूप में खुल रहे मन के बाजूबंद
महानगर की व्यस्तता मौसम घोले भंग
इक दिन की आवारगी छुट्टी होली रंग
अंजुरी में भरपूर हों सदा रूप रस गंध
जीवन में अठखेलियाँ करता रहे बसंत।।।
...होली के पावन अवसर पर शुभकामनाएँ !!


होली वही जो  परिवार  को पास लाए,
होली  वही  जो  दोस्त  को साथ  लाए, 
होली  वही  जो  शत्रु को  मित्र  बनाए, 
होली  वही  जो  बुरी  आदतों  को  जलाए,
 होली  वही  जो सकारात्मक  विचार  लाए, 
होली  वही  जो  रंग  भी लगाए,  
होली वही  जो  पानी  भी  बचाए,
 होली  वही  जो  शिक्षा  का प्रकाश  फैलाए, 
होली  वही  जो  संकल्पों  की  याद  दिलाए, 
होली  वही  जो  मस्ती  में  रहकर  भी  
अपने  कर्तव्यों  का एहसास  दिलाए।
होली के पावन पर्व पर रंग भरी शुभकामनाये।

(ये सन्देश  वाट्सअप पर प्राप्त हुये, अच्छा लगा सो आप सभी के साथ शेयर कर रही हूँ)

रंगों के पर्व होली के शुभ अवसर पर आपको और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाएँ !! 

सोमवार, 21 मार्च 2016

'दैनिक नवज्योति' हिन्दी समाचार पत्र (राजस्थान) का अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर शर्मनाक कारनामा

''नारी तू नारायणी'' सुनना अच्छा लगता है, पर जब इसकी आड़ में नारी की रचनाधर्मिता पर ही चोट की जाय, तो बड़ा अजीब लगता है।  राजस्थान से प्रकाशित ''दैनिक नवज्योति'' अख़बार ने 8 मार्च 2016 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हमारे एक आलेख ''बदलते दौर में महिला'' को भिन्न-भिन्न खण्डों में चोरी से कट-पेस्ट कर दूसरी महिलाओं  के नाम से प्रकाशित किया है। जिन महिलाओं  के नाम से इसे खण्डवार रूप में प्रकाशित किया गया है, उनके नाम हैं -शिवानी पुरोहित (कवयित्री व लेखिका), रुचिका शर्मा (व्याख्याता), संजू सोलंकी, अल्का बोहरा, इंजि मुक्ता चौधरी, कविता शर्मा (अध्यापिका), डा. मनोरमा उपाध्याय, प्राचार्य, महिला महाविद्यालय, शोभा सोनी (गृहिणी)। ''दैनिक नवज्योति'' समाचार पत्र के जोधपुर संस्करण में पृष्ठ संख्या 10 और 13 पर लेख के अधिकतर हिस्से को काट-छाँट कर इन महिलाओं के नाम से अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर प्रकाशित किया गया है। यह आलेख इंटरनेट पर भी उपलब्ध है और शायद इसीलिए इसके संपादक या संबंधित पेज  के संयोजक ने मेहनत करने की बजाय इसे सीधे कट-पेस्ट कर दूसरों  के नाम से प्रकाशित कर दिया। वाह रे ''अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस'' मनाने का अखबारी और कागजी जज्बा।  

समाचार पत्र का इतिहास खंगाला तो पता चला कि राजस्थान के स्वाधीनता सेनानी कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरी जी  द्वारा संस्थापित दैनिक नवज्योति जयपुर, जोधपुर, अजमेर और कोटा, राजस्थान से प्रकाशित होने वाला एक दैनिक हिन्दी समाचार पत्र है। इसका प्रथम संस्करण 1936  में प्रकाशित हुआ था। ...... पता नहीं अब यह दैनिक समाचार पत्र कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरी जी की परम्परा को छोड़कर इस प्रकार की साहित्यिक और लेखकीय चौर्य वृत्ति को क्यों प्रवृत्त कर रहा है।  नाम तो नव ''ज्योति' पर दीपक तले अँधेरा वाली कहावत पूरी चरितार्थ कर रहा है। 


यह तो संयोग था कि एक साहित्यकार ने ही फोन द्वारा इस बात की तरफ हमारा ध्यान आकृष्ट किया ......पर वाकई ये शर्मनाक वाकया है। अपने पूरे लेख को यहाँ पोस्ट करने के साथ के साथ-साथ जिन अंशों को दैनिक नवज्योति ने दूसरी महिलाओं  के नाम से उद्धृत किया है, उन्हें बोल्ड भी कर रही हूँ ताकि प्रत्यक्षम् किम प्रमाणम् की तर्ज पर आप लोग भी नीर-क्षीर अवलोकन कर सकें। 

(हमारे इस आलेख को आप यहाँ पढ़ सकते हैं -   बदलते दौर में महिला

(इस पोस्ट का मूल उद्देश्य इंटरनेट पर ब्लॉग, वेब पत्रिकाओं जैसे तमाम माध्यमों पर लिख रहे रचनाकारों को सतर्क करना है, जिनकी रचनाओं को कुछेक चौर्य प्रवृत्ति वाले लोग कट-पेस्ट करके अपने या दूसरों के नाम से प्रकाशित कर रहे हैं।)



भारतीय संस्कृति में नारी को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। वह शिव भी है और शक्ति भी, तभी तो भारतीय संस्कृति में सनातन काल से अर्धनारीश्वर की कल्पना सटीक बैठती है। इतिहास गवाह है कि भारतीय समाज ने कभी मातृशक्ति के महत्व का आकलन कम नहीं किया और जब भी ऐसा करने की कोशिश की तो समाज में कुरीतियाँ और कमजोरियांँ ही पनपीं। हमारे वेद और ग्रंथ नारी शक्ति के योगदान से भरे पड़े हैं। विश्ववरा, अपाला, लोमशा, लोपामुद्रा तथा घोषा जैसी विदुषियों ने ऋग्वेद के अनेक सूक्तों की रचना करके और मैत्रेयी, गार्गी, अदिति इत्यादि विदुषियों ने अपने ज्ञान से तब के तत्वज्ञानी पुरूषों को कायल बना रखा था। नारी को आरंभ से ही सृजन, सम्मान और शक्ति का प्रतीक माना गया है। शास्त्र से लेकर साहित्य तक नारी की महत्ता को स्वीकार किया गया है- “यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते, रमन्ते तत्र देवता।“ 
सिंधु संस्कृति में भी मातृदेवी की पूजा का प्रचलन परिलक्षित होता है। नारी का कार्यक्षेत्र न केवल घर बल्कि सारा संसार है। प्रकृति ने वंश वृद्धि की जो जिम्मेदारी नारी को दे रखी है, वह न केवल एक दायित्व है अपितु एक चमत्कार और अलौकिक सुख भी। इन सबके बीच नारी आरंभ से ही अपनी भूमिकाओं के प्रति सचेत रही है।




नारी को आरंभ से ही कोमलता, भावकुता, क्षमाशीलता, सहनशीलता की प्रतिमूर्ति माना जाता रहा है पर यही नारी आवश्यकता पड़ने पर रणचंडी बनने से भी परहेज नहीं करती क्योंकि वह जानती है कि यह कोमल भाव मात्र उन्हें सहानुभूति और सम्मान की नजरों से देख सकता है, पर समानांतर खड़ा होने के लिए अपने को एक मजबूत, स्वावलंबी, अटल स्तंभ बनाना ही होगा। इतिहास गवाह है कि आजादी के दौर में तमाम महिलाओं ने स्वतंत्रता-आंदोलन में बढ़-चढकर हिस्सा लिया। एक तरफ इन्होंने स्त्री-चेतना को प्रज्वलित किया, वहीं आजादी के आंदोलन में पुरुषों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर आगे बढ़ीं। कईयों ने तो अपनी जान भी गँवा दी, फिर भी महिलाओं के हौसले कम नहीं हुए। रानी चेनम्मा, रानी लक्ष्मीबाई, झलकारीबाई, बेगम हजरत महल, ऊदा देवी जैसी तमाम वीरांगनाओं का उदाहरण हमारे सामने है, पर जब आजादी का ज्वार तेजी से फैला तो तमाम महिलाएं इसमें शामिल होती गईं। इस क्रम में सरोजिनी नायडू, सावित्रीबाई फुले, स्वामी श्रद्धानन्द की पुत्री वेद कुमारी और आज्ञावती, नेली सेनगुप्त, नागा रानी गुइंदाल्यू, प्रीतीलता वाडेयर, कल्पनादत्त, शान्ति घोष, सुनीति चौधरी, बीना दास, सुहासिनी अली, रेणुसेन, दुर्गा देवी बोहरा, सुशीला दीदी, अरुणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी, ऊषा मेहता, कस्तूरबा गाँधी, डॉ0 सुशील नैयर, विजयलक्ष्मी पण्डित, कैप्टन लक्ष्मी सहगल, राजकुमारी अमृत कौर, इन्दिरा गाँधी, एनी बेसेंट, मैडम भीकाजी कामा, मारग्रेट नोबुल (भगिनी निवेदिता), मैडेलिन ‘मीरा बहन’ इत्यादि महिलाओं ने न सिर्फ आजादी बल्कि समानांतर रूप में नारी हकों की लड़ाई भी लड़ी। आखिर तभी तो महात्मा गाँधी ने कहा था कि-”भारत में ब्रिटिश राज मिनटों में समाप्त हो सकता है, बशर्ते भारत की महिलाएं ऐसा चाहें और इसकी आवश्यकता को समझें।“
आज नारी जीवन के हर क्षेत्र में कदम बढ़ा रही है। आज की नारी अपने कर्तव्यों को गृहकार्यों की इतिश्री ही नहीं समझती है, अपितु अपने सामाजिक दायित्वों के प्रति भी सजग है। वह अब स्वयं के प्रति सचेत होते हुए अपने अधिकारों के प्रति आवाज उठाने का माद्दा रखती है। कोई सिर्फ यह कहकर उनके आत्मविश्वास को तनिक भी नहीं हिला सकता कि वह एक ‘नारी‘ है। शिक्षा के चलते नारी जागरूक हुई और इस जागरूकता ने नारी के कार्यक्षेत्र की सीमा को घर की चहरदीवारी से बाहर की दुनिया तक फैला दिया। शिक्षा के बढ़ते प्रभाव के चलते आज नारी भी अपने कैरियर के प्रति संजीदा है। इससे जहाँ नारी अपने पैरों पर खड़ी हो सकी, वहीं आर्थिक आत्मनिर्भरता ने उसे रचनात्मक कार्यों हेतु भी प्रेरित किया। आज जरूरत इस बात की भी है कि जी.डी.पी. में महिलाओं के कार्य की गणना हो और घरेलू कार्यों को हवा में न उड़ाया जाय। इस अवधारणा को बदलने की जरुरत है कि बच्चों का लालन-पोषण और गृहस्थी चलाना सिर्फ नारी का काम है। यह एक पारस्परिक जिम्मेदारी है, जिसे पति-पत्नी दोनों को उठाना चाहिए। इस बदलाव का कारण महिलाओं में आई जागरूकता है, जिसके चलते महिलायें अपने को दोयम नहीं मानतीं और कैरियर के साथ-साथ पारिवारिक-सामाजिक परम्पराओं के क्षेत्र में भी बराबरी का हक चाहती हैं।

एक तरफ लड़कियाँ हाईस्कूल व इंटर की परीक्षाओं में बाजी मार रही हैं, वहीं तमाम प्रतियोगी परीक्षाओं के साथ देश की सर्वाधिक प्रतिष्ठित सिविल सेवाओं में भी उनका नाम हर साल बखूबी जगमगा रहा है।


अब जागरूक नारी समाज की अवहेलना करना आसान नहीं रहा। आज एक महिला घर में अकेले जितना कार्य करती है, उसका मोल कोई नहीं समझता। पुरुष इसे महिला की ड्यूटी मानकर निश्चिन्त हो जाता है। यह उस स्थिति में भी है जबकि महिला भी कमा रही होती है।




वक्त के साथ नारी का स्वभाव और चरित्र भी बदला है एवं अपने अधिकारों के प्रति वह बखूबी जागरूक हुई है। राजनीति, प्रशासन, समाज, उद्योग, व्यवसाय, विज्ञान-प्रौद्योगिकी, फिल्म, संगीत, साहित्य, मीडिया, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, वकालत, कला-संस्कृति, शिक्षा, आई॰ टी॰, खेल-कूद, सैन्य से लेकर अंतरिक्ष तक नारी ने छलांग लगाई है। नारी की नाजुक शारीरिक संरचना के कारण यह माना जाता रहा है कि वे सुरक्षा जैसे कार्यों का निर्वहन नहीं कर सकतीं। पर बदलते वक्त के साथ यह मिथक टूटा है। महिलाएं आज पुलिस, सेना, और अर्द्वसैनिक बलों में बेहतरीन तैनाती पा रही हैं। यही नहीं श्मशान में जाकर आग देने से लेकर महिलाएं वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच पुरोहिती का कार्य करती हैं और विवाह के साथ-साथ शांति यज्ञ, गृह प्रवेश, मंुडन, नामकरण और यज्ञोपवीत भी करा रही हैं। वस्तुतः समाज की यह पारंपरिक सोच कि महिलाओं के जीवन का अधिकांश हिस्सा घर-परिवार के मध्य व्यतीत हो जाता है और बाहरी जीवन से संतुलन बनाने में उन्हें समस्या आएगी, बेहद दकियानूसी लगती है। रुढ़ियों को धता बताकर महिलाएं जमीं से लेकर अंतरिक्ष तक हर क्षेत्र में नित नई नजीर स्थापित कर रही हैं। कल्पना चावला व सुनीता विलियम्स ने तो अंतरिक्ष तक की सैर की। पंचायतों में मिले आरक्षण का उपयोग करते हुए नारी जहाँ नए आयाम रच रही है, वहीं विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका में भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ा है। आज देश की राष्ट्रपति, लोकसभा की अध्यक्ष, विपक्ष की नेता, सत्ताधारी कांग्रेस की अध्यक्ष, सर्वाधिक शक्तिशाली राष्ट्र अमेरिका में भारत की राजदूत से लेकर तीन राज्यों की मुख्यमंत्री रूप में महिला पदासीन हैं तो यह नारी सशक्तीकरण का ही उदाहरण है। 
महिलाओं को सम्पत्ति में बेटे के बराबर हक देने हेतु हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन, घरेलू महिला हिंसा अधिनियम, सार्वजनिक जगहों पर यौन उत्पीड़न के विरूद्ध नियम एवं लैंंगिक भेदभाव के विरूद्ध उठती आवाज नारी को मुखर कर रही है। दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, बाल विवाह, शराबखोरी, लिंग विभेद जैसी तमाम बुराईयों के विरुद्ध नारी आगे आ रही है और दहेज लोभियों को बैरंग लौटाने, और शराब के ठेकों को बंद कराने जैसी कदमों को प्रोत्साहित कर रही है। ये सभी घटनाएं अधिकारों से वंचित नारी की उद्धिग्नता को प्रतिबिंबित कर रही हैं। आज वह स्वयं को सामाजिक पटल पर दृढ़ता से स्थापित करने को व्याकुल है। 

शर्मायी-सकुचायी सी खड़ी महिला अब रुढ़िवादिता के बंधनों को तोड़कर अपने अस्तित्व का आभास कराना चाहती है। वर्तमान समय में नारी अपनी सम्पूर्णता को पाने की राह पर निरंतर बढ़ रही है, ताकि समाज के नारी विषयक अधूरे ज्ञान को अपने आत्मविश्वास की लौ से प्रकाशित कर सके।
नारी की जागरूकता ने नारी को अपनी अभिव्यक्तियों के विस्तार का सुनहरा मौका भी दिया है। साहित्य व लेखन के क्षेत्र में भी नारी का प्रभाव बढ़ा है। सरोजिनी नायडू, महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान, साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता (1956) प्रथम महिला साहित्यकार अमृता प्रीतम, प्रथम भारतीय ज्ञानपीठ महिला विजेता (1976) आशापूर्णा देवी, इस्मत चुगतई, शिवानी, चंद्रकांता, कुर्रतुल हैदर, महाश्वेता देवी, मन्नू भंडारी, मैत्रेयी पुष्पा, प्रभा खेतान, ममता कलिया, मृणाल पाण्डे, चित्रा मुदगल, कृष्णा सोबती, निर्मला जैन, उषा प्रियंवदा, मृदुला गर्ग, राजी सेठ, पुष्पा भारती, नासिरा शर्मा, सूर्यबाला, सुनीता जैन, रमणिका गुप्ता, अलका सरावगी, मालती जोशी, डॉ० कृष्णा अग्निहोत्री, मेहरुन्निसा परवेज, ज्योत्सना मिलन, डॉ० सरोजनी प्रीतम, गगन गिल, सुषम बेदी, पद्मा सचदेव, क्षमा शर्मा, अनामिका, अरुधंती राय इत्यादि नामों की एक लंबी सूची है, जिन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं को ऊँचाईयों तक पहुँचाया। उनका साहित्य आधुनिक जीवन की जटिल परिस्थितियों को अपने में समेटे, समय के साथ परिवर्तित होते मानवीय सम्बन्धों का जीता-जागता दस्तावेज है। भारतीय समाज की सांस्कृतिक और दार्शनिक बुनियादों को समकालीन परिप्रेक्ष्य में विश्लेषित करते हुये उन्होंने अपनी वैविध्यपूर्ण रचनाशीलता का एक ऐसा आकर्षक, भव्य और गम्भीर संसार निर्मित किया, जिसका चमत्कार सारे साहित्यिक जगत महसूस करता है।
साहित्य के माध्यम से नारी ने जहाँ पुराने समय से चली आ रही कु-प्रथाओं पर चोट किया, वहीं समाज को नए विचार भी दिए। अपनी विशिष्ट पहचान के साथ नारी साहित्यिक व सांस्कृतिक गरिमा को नई ऊँचाईयाँ दे रही है। उसके लिये चीजें जिस रूप में वाह्य स्तर पर दिखती हैं, सिर्फ वही सच नहीं होतीं बल्कि उनके पीछे छिपे तत्वों को भी वह बखूबी समझती है। साहित्य व लेखन के क्षेत्र में सत्य अब स्पष्ट रूप से सामने आ रहा है। समस्यायें नये रूप में सामने आ रही हैं और उन समस्याओं के समाधान में नारी साहित्यकार का दृष्टिकोण उन प्रताड़नाओं के यथार्थवादी चित्रांकन से भिन्न समाधान की दशाओं के निरूपण की मंजिल की ओर चल पड़ा है। जहाँ कुछ पुरुष साहित्यकारों ने नारी-लेखन के नाम पर उसे परिवार की चहरदीवारियों में समेट दिया या ‘देह‘ को सैंडविच की तरह इस्तेमाल किया, वहाँ ‘नारी विमर्श‘ ने नए अध्याय खोले हैं। अस्तित्ववादी विचारों की पोषक सीमोन डी बुआ ने ‘सेकेण्ड सेक्स’ में स्त्रियों के विरूद्ध होने वाले अत्याचारों और अन्यायों का विश्लेषण करते हुए लिखा था कि-“पुरूष ने स्वयं को विशुद्ध चित्त (ठमपदह.वित. पजेमस िरू स्वयं में सत्) के रूप में परिभाषित किया है और स्त्रियों की स्थिति का अवमूल्यन करते हुए उन्हें “अन्य” के रूप में परिभाषित किया है व इस प्रकार स्त्रियों को “वस्तु” रूप में निरूपित किया गया है।’’ ऐसे में स्त्री की यौनिकता पर चोट करने वालों को नारी साहित्यकारों ने करारा जवाब दिया है। वे नारी देह की बजाय उसके दिमाग पर जोर देती हैं। उनका मानना है कि दिमाग पर बात आते ही नारी पुरुष के समक्ष खड़ी दिखायी देती है, जो कि पुरुषों को बर्दाश्त नहीं। इसी कारण पुरुष नारी को सिर्फ देह तक सीमित रखकर उसे गुलाम बनाये रखना चाहता है। यहाँ पर अमृता प्रीतम की रचना ष्दिल्ली की गलियाँष् याद आती है, जब कामिनी नासिर की पेंटिग देखने जाती है तो कहती है-श्तुमने वूमेन विद फ्लॉवर, वूमेन विद ब्यूटी या वूमेन विद मिरर को तो बड़ी खूबसूरती से बनाया पर वूमेन विद माइंड बनाने से क्यों रह गए।श् निश्चिततः यह कथ्य पुरुष वर्ग की उस मानसिकता को दर्शाता है जो नारी को सिर्फ भावों का पुंज समझता है, एक समग्र व्यक्तित्व नहीं। नारी को ‘मर्दवादी यौनिकता’ से परे एक स्वतंत्र व समग्र व्यक्तित्व के रुप में देखने की जरुरत है। कभी रोती-बिलखती और परिस्थितियों से हर पल समझौता कर अपना ‘स्व‘ मिटाने को मजबूर नारी आज की कविता, कहानी, उपन्यासों में अपना ‘स्व‘ न सिर्फ तलाश रही हैं, बल्कि उसे ऊँचाईयों पर ले जाकर नए आयाम भी दे रही है। उसका लेखन परम्पराओं, विमर्शों, विविध रूचियों एवं विशद अध्ययन को लेकर अंततः संवेदनशील लेखन में बदल जाता है।
वर्तमान दौर में नारी का चेहरा बदला है। नारी पूज्या नहीं समानता के स्तर पर व्यवहार चाहती है। सदियों से समाज ने नारी को पूज्या बनाकर उसकी देह को आभूषणों से लाद कर एवं आदर्शों की परंपरागत घुट्टी पिलाकर उसके दिमाग को कुंद करने का कार्य किया, पर नारी आज कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स, पी0टी0 उषा, किरण बेदी, कंचन चौधरी भट्टाचार्य, इंदिरा नूई, शिखा शर्मा, किरण मजूमदार शॉ, वंदना शिवा, चंदा कोचर, ऐश्वर्या राय, सुष्मिता सेन, फ्लाइंग ऑफिसर सुषमा मुखोपाध्याय, कैप्टन दुर्गा बैनर्जी, ले0 जनरल पुनीता अरोड़ा, सायना नेहवाल, संतोष यादव, निरुपमा राव, कृष्णा पूनिया, कुंजारानी देवी, इरोम शर्मिला, मेघा पाटेकर, अरुणा राय, जैसी शक्ति बनकर समाज को नई राह दिखा रही है और वैश्विक स्तर पर नाम रोशन कर रही हैं। नारी की शिक्षा-दीक्षा और व्यक्तित्व विकास के क्षितिज दिनों-ब-दिन खुलते जा रहे हैं, जिससे तमाम नए-नए क्षेत्रों का विस्तार हो रहा हैं। कभी अरस्तू ने कहा कि -“स्त्रियाँ कुछ निश्चित गुणों के अभाव के कारण स्त्रियाँ हैं” तो संत थॉमस ने स्त्रियों को “अपूर्ण पुरूष” की संज्ञा दी थी, पर वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ऐसे तमाम सतही सिद्वान्तों का कोई अर्थ नहीं रह गया एवं नारी अपनी जीवटता के दम पर स्वयं को विशुद्ध चित्त (ठमपदह.वित. पजेमस िरू स्वयं में सत् ) के रूप में देख रही है। नारी आज न सिर्फ सशक्त हो रही है, बल्कि लोगों को भी सशक्त बना रही है। इस बात को अंततः स्वीकार करने की जरुरत है कि नारी को बढ़ावा देकर न सिर्फ नारी समृद्ध होगी बल्कि अंततः परिवार, समाज और राष्ट्र भी सशक्त और समृद्ध बनेंगे। नारी उत्कर्ष आज सिर्फ एक जरूरत नहीं बल्कि विकास और प्रगति का अनिवार्य तत्व है।
http://shabdshikhar.blogspot.com/