बेटियां परिवार ही नहीं, समाज, देश और दुनिया के भी सुनहरे भविष्य की गंगोत्री हैं। आज स्कूल और कॉलेज में पढ़ रहीं बेटियों में से ही कुछ और मदर टेरेसा, इंदिरा गांधी, किरण बेदी, कल्पना चावला, सानिया मिर्जा निकलकर नई रोशनी बिखेरेंगी। इसी सद्भावना को ध्यान में रखकर राजस्थान पत्रिका समूह ने अपना अनूठा अभियान 'बिटिया@वर्क' आयोजित किया। इसके तहत 5 अप्रैल, 2016 को कई अभिभावक 8 से 19 साल तक की अपनी बेटियों को लेकर अपने दफ्तर या कार्यस्थल पर लेकर पहुंचे। यह एक तरह से बेटी को आगे बढ़ाने, नया संसार दिखाने, अपने कर्मस्थल से परिचित कराने का दिन था। अभिभावक के कामकाज से रू-ब-रू होना बेटियों के लिए नया अनुभव था। उनके चेहरों पर उत्साह था, रोमांच भी। बेटियों ने भी ये जाना कि मम्मी-पापा कितनी मेहनत करते हैं, तब जाकर उनका लालन-पालन कर पाते तरह से औपचारिक कार्यक्रमों, भाषणों से परे पत्रिका के इस अभियान ने बेटियों के लिए इस दिन को यादगार बना दिया। कुछ बेटियों ने तो अपने माता-पिता की तरह प्रशासनिक अधिकारी, डॉक्टर, इंजीनियर, टीचर बनने तक का संकल्प लिया। माता-पिता के लिए भी बेटियों को अपने काम से रू-ब-रू कराने का अलग तरह का अनुभव था।
इसी क्रम में हमारी प्यारी बेटियाँ अक्षिता (9) और अपूर्वा (5) भी 'राजस्थान पत्रिका' की पहल बिटिया @ वर्क के तहत अपने पापा श्री कृष्ण कुमार यादव के साथ उनके ऑफिस पहुँचीं, जो कि राजस्थान पश्चिमी क्षेत्र, जोधपुर के निदेशक डाक सेवाएं हैं। इस अवसर पर राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से सम्मानित नन्ही ब्लॉगर अक्षिता ने राजस्थान पत्रिका को बताया कि पापा के ऑफिस जाकर और वहाँ की कार्य प्रणाली देखकर बहुत अच्छा और प्रेरणादायी लगा। मैं भी बड़ी होकर पापा जैसी ही आई.ए.एस. परीक्षा देकर ऑफिसर बनना चाहती हूँ। पापा के ऑफिस में फाइलों के निपटान से लेकर तमाम प्रोजेक्ट्स की ऑनलाईन मॉनिटरिंग देखी। ऑफिस आकर देखा कि पापा कैसे लोगों की समस्या का समाधान करते हैं। इस शानदार पहल के लिए पत्रिका का आभार। अपूर्वा की उम्र भले ही 5 वर्ष हो, पर यह भी अपना रोमांच और उत्साह दिखाने से नहीं चूकी।
-आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर
Akanksha Yadav : http://shabdshikhar.blogspot.com/
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