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शनिवार, 9 अप्रैल 2016

लैंगिक अन्याय के विरुद्ध मुहिम लाई रंग : शनि शिंगणापुर मंदिर के 400 साल के इतिहास में पहली बार महिलाओं को पूजा करने की इजाजत


लैंगिक न्याय के लिए आंदोलन अंतत: रंग लाया और महाराष्ट्र के अहमदनगर स्थित शनि शिंगणापुर मंदिर में नवरात्र के पहले दिन 8 अप्रैल, 2016 को 400 साल पुरानी परंपरा टूट गई। महिलाओं ने मंदिर के चबूतरे पर चढ़कर पूजा अर्चना की। 

गौरतलब है कि शनि शिंगणापुर मंदिर शनिदेव को समर्पित है, शनिदेव हिंदू मान्यता में शनि ग्रह हैं। इस मंदिर की सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार महिला श्रद्धालुओं को खुले गर्भगृह पर जाने की इजाजत नहीं थी। इस मंदिर में दीवार और छत नहीं है। पावन भाग के रूप में पांच फुट का एक विशाल काला पत्थर है और उसकी शनि देव के रूप में पूजा की जाती है। आंदोलन शुरू होने के बाद मंदिर प्रबंधन ने पिछले दो महीनों में पुरुषों के लिए विशेष पूजा की पद्धति पर रोक लगा दी। अभी तक पुरुष और महिलाएं दोनों ही मूर्ति से समान दूरी पर प्रार्थना करते थे। केवल पुरोहितों को ही गर्भगृह में जाने की इजाजत है। महिलाओं के प्रवेश पर रोक संबंध सदियों पुरानी परंपरा का उल्लंघन करते हुए पिछले साल एक महिला ने शनि शिंगणापुर मंदिर में प्रवेश करने और पूजा करने की कोशिश की थी तब से  मंदिरों के गर्भगृह में महिलाओं के प्रवेश के मुद्दे पर बहस तेज हो गयी। इस घटना के बाद मंदिर समिति ने सात सुरक्षाकर्मियों को निलंबित कर दिया था और ग्रामीणों ने शुद्धिकरण किया था। उसके बाद तृप्ति देसाई की अगुवाई में भूमाता ब्रिगेड ने शनि मंदिर में इस पाबंदी का उल्लंघन करने के लिए अभियान शुरू किया और लैंगिक न्याय के लिए आंदोलन का निश्चय प्रकट किया। 

बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी इस मामले पर फैसला सुनाया था कि पूजा करने से महिलाओं को नहीं रोका जा सकता। इस आदेश के बाद भी मंदिर ट्रस्ट महिलाओं को पूजा करने के अधिकार के खिलाफ अड़ा हुआ था। शनि शिंगणापुर मंदिर ट्रस्ट ने शुक्रवार सुबह घोषणा की कि वे लोग महिलाओं को पूजा करने से नहीं रोकेंगे। इस तरह सुप्रसिद्ध शनि शिंगणापुर मंदिर के 400 साल के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब महिलाओं को पूजा करने की इजाजत मिली।

महिलाओं को मंदिरों में प्रवेश के अधिकार की लड़ाई लड़ रहीं भूमाता ब्रिगेड की प्रमुख तृप्ति देसाई ने कहा है कि यह तो केवल अभी शुरुआत है। जिन-जिन मंदिरों में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है उनके खिलाफ उनका संघर्ष जारी रहेगा। उन्होंने बताया कि 13 अप्रैल को कोल्हापुर के महालक्ष्मी मंदिर में वे लोग प्रवेश के लिए संघर्ष करेंगी।

आशा की जानी चाहिए कि जिस देश में मातृ-शक्ति की पूजा की जाती है और उसे देवी का दर्जा दिया जाता है, वहाँ इस प्रकार की लैंगिक भेदभाव की परम्परा को सभ्य समाज बर्दाश्त नहीं करेगा और आगे बढ़कर नई इबारत लिखेगा !!
-आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 

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