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शुक्रवार, 22 अप्रैल 2016

एक पत्नी का रोजनामचा

बेवक़ूफ़
वो
रोज़ाना की तरह
आज फिर ईश्वर का नाम लेकर उठी.
किचिन में आई
और चूल्हे पर चाय का पानी चढ़ाया.
फिर
बच्चों को जगाया
ताकि वो स्कूल के लिए तैयार हो सकें.
फिर
उसने किचिन में
जाकर चाय निकाली
अपने सास ससुर को देकर आयी,
फिर
उसने बच्चों का
नाश्ता तैयार किया
और बीच-बीच में बच्चों को ड्रेस पहनाई,
और
फिर बच्चों को
नाश्ता कराकर उनके
स्कूल का लंच तैयार करने लगी.
इस बीच
बच्चों के स्कूल का
रिक्शा आ गया..
वो
बच्चों को
रिक्शा तक छोड़ कर आई.
वापस आकर
मेज़ से बर्तन इकठ्ठा किये.
इसी बीच
पतिदेव की आवाज़ आई कि मेरे कपङे निकाल दो.

उनको
ऑफिस जाने लिए
कपड़े निकाल कर दिए,
और
वापस आकर
फिर पति के लिए
नाश्ता तैयार करने लगी.
अभी
पति के लिए
उनकी पसन्द का
नाश्ता अण्डा और पराठे तैयार करके टेबिल पर लगाया ही था,
कि
छोटी ननद आई
और ये कहकर कि भाभी मुझे आज कॉलेज जल्दी जाना है,
नाश्ता उठा कर ले गयी.
वो
फिर एक
हल्की सी मुस्कराहट के साथ वापस किचिन में आई.
इतने में
देवर की आवाज़ आई
भाभी नाश्ते तैयार हो गया क्या..?
"जी भाई अभी लायी..!"
ये कहकर
उसने फिर से
अपने पति और देवर के लिए अॉमलेट और पराठे तैयार करने शुरू किये.
"लीजिये नाश्ता तैयार है..!"
पति और देवर ने
नाश्ता किया और अखबार पढ़कर अपने-अपने ऑफिस के लिए निकल चले.
उसने
मेज़ पर से
खाली बर्तन समेटे
और सास-ससुर के लिए
उनका परहेज़ का नाश्ता तैयार करने लगी..
दोनों को
नाश्ता कराने के बाद
फिर बर्तन इकट्ठे किये
और उनको भी किचिन में लाकर धोने लगी..
इसबीच
सफाई वाली भी आ गयी.
उसने
बर्तन का काम
सफाई वाली को सौंप कर खुद बेड की चादरें वगैरह इकट्ठा करने पहुँच गयी.
और फिर
सफाई वाली के साथ
मिलकर सफाई में जुट गयी.
अब तक 11 बज चुके थे.
अभी
वो पूरी तरह
काम समेट भी ना पायी थी कि कॉलबेल बजी.

दरवाज़ा खोला
तो सामने बड़ी ननद
और उसके पति व बच्चे सामने खड़े थे.
उसने
ख़ुशी-ख़ुशी
सभी को आदर के साथ घर में बुलाया,
और
उनसे बातों में
उनके आने की ख़ुशी का इज़हार करती रही.
ननद की
फ़रमाइश के मुताबिक़
नाश्ता तैयार करने के बाद
अभी वो ननद के पास बैठी ही थी...
कि
सास की आवाज़ आई
"बहू खाने का क्या प्रोग्राम है..?"
उसने घडी पर
नज़र डाली तो 12 बज रहे थे.

उसकी
फ़िक्र बढ़ गयी
वो जल्दी से फ्रिज़ की तरफ लपकी
और
सब्ज़ी निकाली
फिर से दोपहर के
खाने की तैयारी में जुट गयी.
खाना
बनाते-बनाते
अब दोपहर का एक बज चुका था.
बच्चे
स्कूल से आने वाले थे.
लो बच्चे आ गये...
उसने
जल्दी-जल्दी
बच्चों की ड्रेस उतारी
और उनका मुँह-हाथ धुलवाकर उनको खाना खिलाया.
इसी बीच
छोटी ननद भी
कॉलेज से आ गयी
और देवर भी आ चुके थे.
उसने
सभी के लिए
मेज़ पर खाना लगाया
और खुद रोटी बनाने में लग गयी.
खाना खाकर
सब लोग फ्री हुए
तो उसने मेज़ से फिर
बर्तन जमा करने शुरू कर दिये.
इस वक़्त तीन बज रहे थे.
अब
उसको
खुद को भी
भूख का एहसास होने लगा था.
उसने
हॉट-पॉट देखा
तो उसमे कोई रोटी नहीं बची थी.
उसने
फिर से
किचिन की ओर रुख किया .
तभी
पतिदेव घर में
दाखिल होते हुये बोले कि
आज
देर हो गयी
भूख बहुत लगी है
जल्दी से खाना लगा दो.
उसने
जल्दी-जल्दी
पति के लिए खाना बनाया
और
मेज़ पर
खाना लगा कर
पति को किचिन से गर्मागर्म रोटियाँ बनाकर
ला-ला कर देने लगी.
अब तक चार बज चुके थे..
अभी वो
खाना खिला ही रही थी
कि पतिदेव ने कहा कि आ जाओ तुम भी खालो.
उसने
हैरत से
पति की तरफ देखा
तो उसे ख्याल आया कि
आज मैंने सुबह से कुछ खाया ही नहीं.
इस ख्याल के
आते ही वो पति के
साथ खाना खाने बैठ गयी.
अभी
पहला निवाला
उसने मुँह में डाला ही था की आँख से आँसू निकल आये.
पतिदेव ने
उसके आँसू देखे
तो फ़ौरन पूछा कि
तुम क्यों रो रही हो...?
वो खामोश रही
और सोचने लगी कि
इन्हें
कैसे बताऊँ कि
ससुराल में कितनी मेहनत के बाद ये रोटी का निवाला नसीब होता है
और लोग
इसे मुफ़्त की रोटी कहते हैं.
पति के
बार बार पूछने पर
उसने सिर्फ इतना कहा
कि
कुछ नहीं
बस ऐसे ही आँसू आ गये.
पति
मुस्कुराये और बोले
तुम
औरतें भी
बड़ी "बेवक़ूफ़" होती हो.
बिना वजह
रोना शुरू करदेती हो.
........... 
क्या वो 
वाकई बेवक़ूफ़ होती हैं..?

ज़रा सोचिये..
उन्हें 
ज्यादा कुछ नहीं
सहानुभूति और स्नेह 
के बस दो मीठे बोल चाहिये.

अपनी पत्नी को सम्मान दीजिए.... 

(यह सन्देश रूपी रचना वाट्सएप पर मिली।  किसने लिखा, इसका जिक्र नहीं ... पर जिसने भी लिखा दिल्लगी से लिखा.....साधुवाद ।  अच्छा लगा, अत: आप सभी के साथ शेयर कर रही हूँ)

- आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 
Akanksha Yadav @ http://shabdshikhar.blogspot.in/

1 टिप्पणी:

Media Link Ravinder ने कहा…

दिल को झंक्झौर देती है यह रचना--काश इसका मर्म--इसका दर्द समाज समय रहते समझ पाए---इस रचना को शेयर करने के लिए आभार--शायद इससे बहुत से घरों में नई चेतना जाग सके---