प्यार क्या है। यह एक बड़ा अजीब सा प्रश्न है। पिछले दिनों इमरोज जी का एक इण्टरव्यू पढ़ रही थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि जब वे अमृता प्रीतम के लिए कुछ करते थे तो किसी चीज की आशा नहीं रखते थे। जाहिर है प्यार का यही रूप भी है, जिसमें व्यक्ति चीजें आत्मिक खुशी के लिए करता है न कि किसी अपेक्षा के लिए।
पर क्या वाकई यह प्यार अभी जिन्दा है ? हम वाकई प्यार में कोई अपेक्षा नहीं रखते। यदि रखते हैं तो हम सिर्फ रिश्ते निभाते हैं, प्यार नहीं? क्या हम अपने पति, बच्चों, माँ-पिता, भाई-बहन, से कोई अपेक्षा नहीं रखते।
...सवाल बड़ा जटिल है पर प्यार का पैमाना क्या है? यदि किसी दिन पत्नी या प्रेमिका ने बड़े मन से खाना बनाया और पतिदेव या प्रेमी ने तारीफ के दो शब्द तक नहीं कहे, तो पत्नी का असहज हो जाना स्वाभाविक है। अर्थात् पत्नी/प्रेमिका अपेक्षा रखती है कि उसके अच्छे कार्यों को रिकगनाइज किया जाय। यही बात पति या प्रेमी पर भी लागू होती है। वह चाहे मैनर हो या औपचारिकता हमारे मुख से अनायास ही निकल पड़ता है- थैंक्यू या इसकी क्या जरूरत थी। यहाँ तक की आपसी रिश्तों में भी ये चीजें जीवन का अनिवार्य अंग बन गई हैं। जीवन की इस भागदौड़ में ये छोटे-छोटे शब्द एक आश्वस्ति सी देते हैं।
...पर अभी भी मैं कन्फ्यूज हूँ कि क्या प्यार में अपेक्षायें नहीं होती हैं? सिर्फ दूसरे की खुशी अर्थात् स्व का भाव मिटाकर चाहने की प्रवृत्ति ही प्यार कही जायेगी।
...अभी भी मेरे लिए प्रेम एक अनसुलझा रहस्य है।
-आकांक्षा यादव
13 टिप्पणियां:
किसी से प्रेम करना ही काफी नहीं होता, अगर आप किसी से प्रेम करते है तो उसे ज़ाहिर करना भी जरूरी है इससे प्रेम की उम्र लम्बी होती है, हलाकि यो व्यक्ति प्रेम में अपेक्षाएं नहीं करता वो महान और पूज्निये होता है. लकिन ये ज़रूरी नहीं के इतना ही समझदार आपका साथी भी हो. लकिन फिर भी हमें अपनी वफादारी निभानी चाहिए उसकी नजरो में महान बने रहने के लिए न सही कम से कम अपनी ही नजरो के लिए.
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आपका तर्क बिल्कुल सही है पर प्रेम मे अपेक्षाये बहुत ही कम होती है जैसा कि आपने एमरोज़ जी की इंटरव्यू का जिक्र किया है ........प्रेम मे अभिव्यक्ति व्यवहार मे बदल जाता है जिसमे सिर्फ महसूस होता है करनेवाला और पाने वाला दोनो ही एक दूसरे को मह्सूस कर समझ जाते है .........
प्रेम आदमी को सब कुछ सीखा देता है और प्रेम मेरे हिसाब से दुनिया में सभे तरह के रोगों की दवा है
अजी प्रेम करने वाला बस प्रेम करता है, उसे कुछ नही चाहिये, वो सिर्फ़ देता है, लेने वाला क्या प्यार करेगा, ओर जताने वाला क्या प्यार की परिभाषा जाने...
main raaj bhatia ji se poori tarah sahmat hun. baki prem ahsaas hai mehsoos karne ki cheej hai.
पूरी तरह से निरपेक्ष प्रेम सिर्फ़ दिवाने ही कर सकते हैं. वर्ना थोडी बहुत तारीफ़ से प्रेम निखर आता है.
रामराम.
प्रेम की सब की अपनी अलग परिभाषा होती है कई लोगो को जीवन भर यह समझ मे नही आती । प्रेम जबकि हर परिभाषा से परे होता है । और प्रेम व अपेक्षा का साथ सहज स्वाभाविक है । यह अपेक्षाये साथ रहते रहते पैदा होती है ।
...बड़ा गूढ़ विषय है. चुप ही रहना बेहतर है.
...बड़ा गूढ़ विषय है. चुप ही रहना बेहतर है.
प्रेम का अर्थ कोई न जाने !
तभी तो होते सभी दीवाने !!
"क्या प्यार में अपेक्षायें नहीं होती हैं? सिर्फ दूसरे की खुशी अर्थात् स्व का भाव मिटाकर चाहने की प्रवृत्ति ही प्यार कही जायेगी।...अभी भी मेरे लिए प्रेम एक अनसुलझा रहस्य है।"
"देने में ख़ुशी का अनुभव और अपेक्षाओं का त्याग" इस प्रयोग को अमल में लायें और नित-प्रति इस पर सच्ची डायरी लिखें की आपको क्या महसूस हुआ, आपको इस रहस्य पर से पर्दा उठते देर नहीं लगेगी, पर आवश्यकता ईमानदारी से इन भावों के पालन की है..............
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
प्रेम एक तरफ है जिन्दगी दूसरी तरफ
कभी न कभी अतिक्रमण हो ही जाता है
और प्रेम अनसुलझा रहस्य बन जाता है !
Aakansha ji
Namaskaar !
prem ke baare me koi kya kah sakta hai .. prem apne aap me hi itna bada vishay hai ki saari umr khatam ho jaaye ,par lagta hai ki kuch baaki rah gaya ..
main to sirf itna kahunga ki , prem me koi ummed na karna hi sabse accha hota hai ..
love requires a great canvas of thoughts to understand and accept.
bahut badhai aapko is post ke liye
regards
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
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