सद्यःस्नात सी लगती हैं
हर रोज सूरज की किरणें।
खिड़कियों के झरोखों से
चुपके से अन्दर आकर
छा जाती हैं पूरे शरीर पर
अठखेलियाँ करते हुये।
आगोश में भर शरीर को
दिखाती हैं अपनी अल्हड़ता के जलवे
और मजबूर कर देती हैं
अंगड़ाईयाँ लेने के लिए
मानो सज धज कर
तैयार बैठी हों
अपना कौमार्यपन लुटाने के लिए।
कृष्ण कुमार यादव
20 टिप्पणियां:
क्या खूब लिखा है…………अलग सोच दर्शाती रचना।
Woww Beautiful..
सद्यःस्नात सी लगती हैं
हर रोज सूरज की किरणें।
बहुत सुंदर बिंब से निःसृत रचना.
वाह ... अद्भुद बिम्ब प्रयोग...
शब्दों चित्रांकन दर्शनीय है...
मन भाई आपकी यह रचना...
नवीन बिम्बों का सुन्दर प्रयोग ...
बहुत ही सुन्दर कविता
शीर्षक और रचना का जवाब नही!
सुन्दर!
बहुत ही सुन्दर रचना हैं आपकी.
रचना बहुत ही खूबसूरत और अद्भुत बन पड़ी है ...
बहुत खूबसूरती से लिखे एहसास
किरणों की अठखेलियाँ, नये रूप में प्रस्तुत आपके द्वारा।
रचना बहुत ही खूबसूरत है जवाब नही!
खिड़कियों के झरोखों से
चुपके से अन्दर आकर
छा जाती हैं पूरे शरीर पर
अठखेलियाँ करते हुये।
subah ki kirno ka bahoot hi sunder chitra..........
खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
पहली बार इस तरह की कोई कविता पढ़ी. मन को भा गई. भाई कृष्ण कुमार जी को बधाई और आपको इस रचना को पढवाने के लिए आभार.
आकांक्षा जी,
आपको और कृष्ण कुमार भाई जी को शादी की छठवीं सालगिरह मुबारक हो और आपकी जोड़ी यूँ ही तरक्की के पथ पर अग्रसर हो. ढेरों शुभकामनायें.
मानो सज धज कर
तैयार बैठी हों
अपना कौमार्यपन लुटाने के लिए।
...के.के.सर ने तो नई उपमाओं के द्वारा कविता में जान ला दी है...बेहतरीन कविता..बधाई.
शादी की सालगिरह और बिटिया के जन्म दोनों की ढेरों शुभकामनाएं .
So Romantic Poem..Congts.
आगोश में भर शरीर को
दिखाती हैं अपनी अल्हड़ता के जलवे
और मजबूर कर देती हैं
अंगड़ाईयाँ लेने के लिए
मानो सज धज कर
तैयार बैठी हों
अपना कौमार्यपन लुटाने के लिए।
....क्या खूब लिखा है…………अलग सोच दर्शाती रचना।
सद्यःस्नात सी लगती हैं
हर रोज सूरज की किरणें।
...अद्भुत भाव-बिम्ब..बधाई.
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