आज शब्द-शिखर पर प्रस्तुत है वंदना गुप्ता जी की एक कविता. वंदना अंतर्जाल पर जिंदगी एक खामोश सफ़र के माध्यम से सक्रिय हैं।
मंथन किसी का भी करो
मगर पहले तो
विष ही निकलता है
शुद्धिकरण के बाद ही
अमृत बरसता है
सागर के मंथन पर भी
विष ही पहले
निकला था
विष के बाद ही
अमृत बरसा था
विष को पीने वाला
महादेव कहलाया
अमृत को पीने वालों ने भी
देवता का पद पाया
आत्म मंथन करके देखो
लोभ , मोह , राग ,द्वेष
इर्ष्या , अंहकार रुपी
विष ही पहले निकलेगा
इस विष को पीना
किसी को आता नही
इसीलिए कोई
महादेव कहलाता नही
आत्म मंथन के बाद ही
सुधा बरसता है
इस गरल के निकलते ही
जीवन बदलता है
पूर्ण शुद्धता पाओगे जब
तब अमृत्व स्वयं मिल जाएगा
उसे खोजने कहाँ जाओगे
अन्दर ही पा जाओगे
आत्म मंथन के बाद ही
स्वयं को पाओगे
मंथन किसी का भी करो
पहले विष तो फिर
अमृत को भी
पाना ही होगा
लेकिन मंथन तो करना ही होगा !!
वंदना गुप्ता
24 टिप्पणियां:
जी हाँ बिलकुल सच्च है कि,प्रत्येक अपना आत्म-मंथन कर ले तो सभी समस्याओं का समाधान स्वतः हो जाये.
.आपको और वंदना जी दोनों को ही बहुत धन्यवाद और नववर्ष की ढेरों शुभकामनाएँ !!
इस गरल के निकलते ही
जीवन बदलता है
पूर्ण शुद्धता पाओगे जब
तब अमृत्व स्वयं मिल जाएगा
उसे खोजने कहाँ जाओगे
अन्दर ही पा जाओगे
स्वयं के भीतर ही गरल भी है और अमृत भी।
आत्मंथन तो करना ही पड़ेगा...।
बहुत प्रभावशाली कविता।
अच्छी कविता।
बहुत गहरी बात कही है। मंथन पहले तो कड़ुवाहट ही निकाल देता है जिससे अस्तित्व स्वतः ही अमृतमय हो जाता है।
bandana ji ke ye kavita bahut hi sarthak sandesh deti hai. kuchh pane ke liye sach aatmamanthan to jaroori hi hai...... sunder kavita
अच्छी रचना.
बहुत सुंदर संदेश जी धन्यवाद
अच्छी रचना।
सुंदर संदेश।
मंथन किसी का भी करो
पहले विष तो फिर
अमृत को भी
पाना ही होगा
लेकिन मंथन तो करना ही होगा !!
बढ़िया बात लिखी है
शुभकामनाएं
"मंथन तो करना ही होगा !!"
यकीनन मंथन किये बिना अमृत की तलाश बेमानी है
आकांक्षा जी आपका तहे दिल से शुक्रिया मेरी पोस्ट को अपने मंच पर जगह देने के लिये।
मंथन किसी का भी करो
मगर पहले तो
विष ही निकलता है
शुद्धिकरण के बाद ही
अमृत बरसता है
aapne to geeta saar likh diya
atm chintan-atm manthan ka path padhati rachna.
bahut hi bhavpoorn,prerak evam sundar kavita.
सुख -दुखः का खेल तो लगा ही रहता है
सुंदर
गहन विचार मंथन...
सत्य कहा...
कहा तो सच है पर ये मंथन ही तो आसान नहीं .
प्रवाह मय प्रस्तुति.
सज्जन ऐसा चाहिए जैसे सूप सुभाय
सार सार को गहि रहे थोथा देई उडाय
मंथन में गरल और अमृत दोनों ही निकलते हैं,,, महत्वपूर्ण यह है कि हम क्या चुनते हैं
कित्ती अच्छी कविता..बधाई मेरी तरफ से भी.
खूबसूरत अभिव्यक्ति..बधाई.
यह सत्य है कि अमृत पाने के लिये मन्थन आवश्यक है ।
मन्थन करने पर पहले विष प्राप्त होता है बाद मे अमृत।
अच्छी रचना।
स्थिति कहीं भी अच्छी नहीं है , तथ्यपरक लेख ,धन्यवाद ।
आप सभी लोगों को वंदनाजी के कविता की प्रस्तुति पसंद आई...आभार !!
@ Vandana ji,
इसमें शुक्रिया की कोई बात नहीं है. आप बस यूँ ही अच्छी-अच्छी रचनाएँ लिखती रहें और ब्लॉग-जगत लाभान्वित होता रहे आपकी रचनाधर्मिता से.
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