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सोमवार, 3 जनवरी 2011

मंथन

आज शब्द-शिखर पर प्रस्तुत है वंदना गुप्ता जी की एक कविता. वंदना अंतर्जाल पर जिंदगी एक खामोश सफ़र के माध्यम से सक्रिय हैं।

मंथन किसी का भी करो
मगर पहले तो
विष ही निकलता है
शुद्धिकरण के बाद ही
अमृत बरसता है
सागर के मंथन पर भी
विष ही पहले
निकला था
विष के बाद ही
अमृत बरसा था
विष को पीने वाला
महादेव कहलाया
अमृत को पीने वालों ने भी
देवता का पद पाया
आत्म मंथन करके देखो
लोभ , मोह , राग ,द्वेष
इर्ष्या , अंहकार रुपी
विष ही पहले निकलेगा
इस विष को पीना
किसी को आता नही
इसीलिए कोई
महादेव कहलाता नही
आत्म मंथन के बाद ही
सुधा बरसता है
इस गरल के निकलते ही
जीवन बदलता है
पूर्ण शुद्धता पाओगे जब
तब अमृत्व स्वयं मिल जाएगा
उसे खोजने कहाँ जाओगे
अन्दर ही पा जाओगे
आत्म मंथन के बाद ही
स्वयं को पाओगे
मंथन किसी का भी करो
पहले विष तो फिर
अमृत को भी
पाना ही होगा
लेकिन मंथन तो करना ही होगा !!

वंदना गुप्ता

24 टिप्‍पणियां:

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

जी हाँ बिलकुल सच्च है कि,प्रत्येक अपना आत्म-मंथन कर ले तो सभी समस्याओं का समाधान स्वतः हो जाये.

संजय भास्‍कर ने कहा…

.आपको और वंदना जी दोनों को ही बहुत धन्यवाद और नववर्ष की ढेरों शुभकामनाएँ !!

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

इस गरल के निकलते ही
जीवन बदलता है
पूर्ण शुद्धता पाओगे जब
तब अमृत्व स्वयं मिल जाएगा
उसे खोजने कहाँ जाओगे
अन्दर ही पा जाओगे

स्वयं के भीतर ही गरल भी है और अमृत भी।
आत्मंथन तो करना ही पड़ेगा...।

बहुत प्रभावशाली कविता।

Yadav Samaj Praichay Avam Yogdan ने कहा…

अच्छी कविता।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत गहरी बात कही है। मंथन पहले तो कड़ुवाहट ही निकाल देता है जिससे अस्तित्व स्वतः ही अमृतमय हो जाता है।

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

bandana ji ke ye kavita bahut hi sarthak sandesh deti hai. kuchh pane ke liye sach aatmamanthan to jaroori hi hai...... sunder kavita

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

अच्छी रचना.

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर संदेश जी धन्यवाद

मनोज कुमार ने कहा…

अच्छी रचना।
सुंदर संदेश।

Anupama Tripathi ने कहा…

मंथन किसी का भी करो
पहले विष तो फिर
अमृत को भी
पाना ही होगा
लेकिन मंथन तो करना ही होगा !!






बढ़िया बात लिखी है
शुभकामनाएं

M VERMA ने कहा…

"मंथन तो करना ही होगा !!"
यकीनन मंथन किये बिना अमृत की तलाश बेमानी है

vandana gupta ने कहा…

आकांक्षा जी आपका तहे दिल से शुक्रिया मेरी पोस्ट को अपने मंच पर जगह देने के लिये।

निर्झर'नीर ने कहा…

मंथन किसी का भी करो
मगर पहले तो
विष ही निकलता है
शुद्धिकरण के बाद ही
अमृत बरसता है

aapne to geeta saar likh diya

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

atm chintan-atm manthan ka path padhati rachna.
bahut hi bhavpoorn,prerak evam sundar kavita.

babanpandey ने कहा…

सुख -दुखः का खेल तो लगा ही रहता है
सुंदर

रंजना ने कहा…

गहन विचार मंथन...

सत्य कहा...

shikha varshney ने कहा…

कहा तो सच है पर ये मंथन ही तो आसान नहीं .
प्रवाह मय प्रस्तुति.

बेनामी ने कहा…

सज्जन ऐसा चाहिए जैसे सूप सुभाय
सार सार को गहि रहे थोथा देई उडाय

मंथन में गरल और अमृत दोनों ही निकलते हैं,,, महत्वपूर्ण यह है कि हम क्या चुनते हैं

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

कित्ती अच्छी कविता..बधाई मेरी तरफ से भी.

KK Yadav ने कहा…

खूबसूरत अभिव्यक्ति..बधाई.

Ram Avtar Yadav ने कहा…

यह सत्य है कि अमृत पाने के लिये मन्थन आवश्यक है ।
मन्थन करने पर पहले विष प्राप्त होता है बाद मे अमृत।
अच्छी रचना।

सुनील गज्जाणी ने कहा…

स्थिति कहीं भी अच्छी नहीं है , तथ्यपरक लेख ,धन्यवाद ।

Akanksha Yadav ने कहा…

आप सभी लोगों को वंदनाजी के कविता की प्रस्तुति पसंद आई...आभार !!

Akanksha Yadav ने कहा…

@ Vandana ji,

इसमें शुक्रिया की कोई बात नहीं है. आप बस यूँ ही अच्छी-अच्छी रचनाएँ लिखती रहें और ब्लॉग-जगत लाभान्वित होता रहे आपकी रचनाधर्मिता से.