चुनाव की आ गई बहार
लोकतंत्र का ये त्यौहार
नेता घूमें घर-घर गाँव
राजा और रंक एक समान।
मुद्दे अभी वही हैं बारम्बार
गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार
महँगाई आसमान को छुये
अपराधी रोज रहे ललकार।
पाँच साल बाद आई यह बेला
घोषणाओं का फैला रेलम-रेला
जनता अब गई है जाग
नहीं चलेगा कोई खेला।
जाति-धर्म से ऊपर उठकर
दिखायें मतदान का अधिकार
लोकतंत्र के बनेँगेँ पहरुए
जनता ने भरी है हुंकार।
आकांक्षा यादव, (लेखिका और न्यू मीडिया एक्टिविस्ट)
सिविल लाइन्स, इलाहाबाद (उ.प्र.)- 211001
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