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गुरुवार, 1 मई 2014

स्त्री-पुरुष विभेद की मानसिकता

स्त्री और पुरुष में विभेद की मानसिकता बाल-मन में कैसे आती है, यह सवाल लम्बे समय से उठ रह है। हमारा परिवार, परिवेश और स्कूली शिक्षा कहीं-न-कहीं जाने या अनजाने ऐसी बातों को बढ़ावा देते हैं।  ऐसे में जरुरी है कि इस मानसिकता में बदलाव के लिए पहल की जाए। यहाँ तक कि स्कूली पाठ्यक्रम में यह विभेद खुलकर प्रतिबिंबित होता है। आज जब स्त्री-पुरुष दोनों कदम से कदम मिलकर हर क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं, ऐसे में पुस्तकों के  अध्यायों में  नारी  को केवल घरेलू कामकाजी महिला के रूप में दर्शाया जाता है और पुरुष को ऑफिस में कार्य करते।  कई बार ये पुस्तकें स्त्री की छवि को केवल नर्स, डाक्टर या फिर टीचर तक सीमित करने का काम करती हैं, जबकि पुरूषों को पायलट, कलाकार, अंतरिक्ष यात्री, जादूगर, शासक, डाकिया, सब्जी विक्रेता, मोची, लाइब्रेरियन, ड्राइवर, नाटककार, संगीतकार, एथलीट, विद्वान, पहलवान, पुलिसमैन, खिलाड़ी आदि के रूप में दिखाया जाता है।  

 ऐसे में एक पहल के तहत  केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा परिषद ने कक्षा एक से पांँच तक की अपनी एनसीईआरटी पाठ्य पुस्तकों से ऐसे शब्दों और चित्रों को हटाने का फैसला किया है जिनसे लिंगभेद की बू आती हो। मसलन, हिंदी की कविता ’पगड़ी’ और ’पतंग’  औरत की नकारात्मक छवि दर्शाती है। पतंग में यह दिखाने की कोशिश  की गई है कि पतंग केवल लड़के ही उड़ा सकते हैं। इसी प्रकार एनसीईआरटी की कक्षा तीन की पर्यावरण पुस्तक में एक औरत को कुंँए से पानी खींचते हुए दिखाया गया है। मानो यह काम सिर्फ महिलाओं का ही हो। विभेद को ख़त्म करने के लिये परिषद द्वारा मिल्कमैन, पुलिसमैन जैसे शब्दों की बजाय अब पाठ्यपुस्तकों में मिल्कपर्सन, पुलिसपर्सन जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाएगा। 

वस्तुत: एनसीईआरटी के डिपार्टमेंट आॅफ वुमेन्स स्टडीज ने इस पर व्यापक शोध करने के बाद ऐसे शब्दों और चित्रों को पाठ्यपुस्तकों से हटाने का निर्णय लिया है। एनसीईआरटी का मानना है कि इससे स्कूली बच्चे इन फर्क के बारे में सोचेंगे नहीं और लड़का-लड़की का फर्क कम से कम किताबों में न झलके। परिवर्तन गणित, अंग्रेजी, हिंदी और कहानी की किताबों में किया गया है। कहानियों का चयन भी ऐसा होगा जिससे लिंग समानता की सीख मिले। वैसे तमाम महिला संगठन इस बात की लंबे अरसे से मांग करती आ रही हैं कि ऐसे शब्दों के प्रयोग पर बैन लगे जिनसे पुरूष प्रधानता की दुर्गंध आती है। खैर, देर से ही सही पर इस एक कदम से कइयों की मानसिकता तो जरुर बदलेगी !!

- आकांक्षा यादव 
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