रेप, गैंग रेप, वहशी कृत्य, फाँसी, हत्या .....ये सारे शब्द कानों में पिघले शीशे की तरह चुभ रहे हैं। एक-दो दिन के भीतर उत्तर प्रदेश के कुछेक हिस्सों में हुए ऐसे वीभत्स कृत्य सरकार पर गंभीर प्रश्नचिन्ह हैं। मुआवज़ा, सहानुभूति, राजनैतिक बयानबाजी, अधिकारियों के बयान, ब्रेकिंग न्यूज, नेताओं के दौरे, पुलिस जाँच और सीबीआई जाँच .... ये कोई नए शब्द नहीं हैं। प्राय: हर घटना के बाद ऐसे शब्द सुनाई देते हैं और फिर एक लम्बा सन्नाटा पसर जाता है। घटना सिर्फ एक अखबारी कतरन बनकर रह जाती है। आखिर, सरकारें और समाज यह क्यों नहीं सुनिश्चित करता है कि ऎसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो ? जितनी जोर से बयानबाजी होती है, उसके बाद उतनी ही जोर से लीपा-पोती भी होती है। दिल्ली में हुआ 'दामिनी' कांड अभी बहुत पुराना नहीं हुआ है, जब लोग सड़कों पर उतर आये थे…पर उसके बाद की घोषणाओं और वायदों का क्या ?
जब तक ऐसी खोखली बयानबाजियाँ और जाँचें चलती रहेंगी, तब तक इन घटनाओं से पार पाना मुश्किल ही लगता है। जरुरत राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रशासनिक व पुलिस कार्यशैली में सुधार की है। जब राजनीति हर घटना को जाति, संप्रदाय, क्षेत्र या अन्य चश्मे से देखती है और प्रशासन अपना इक़बाल खो बैठता है तो दुष्कर्मियों और दहशतगर्दों में से भय निकल जाता है। जरुरत है कि ऐसे दुष्कृत्यों और पाशविकता के विरुद्ध हम सब सिर्फ अपने-अपने ढंग से खड़े ही न हों, बल्कि सुनिश्चित करें कि इसके अंजाम तक भी पहुँचें। अन्यथा हर एक पखवाड़े पर ऐसी घटनाएँ होती रहेंगी और फिर वही मुआवज़ा, सहानुभूति, राजनैतिक बयानबाजी, अधिकारियों के बयान, ब्रेकिंग न्यूज, नेताओं के दौरे, पुलिस जाँच और सीबीआई जाँच .…… पर नतीजा कब आएगा और क्या आया, किसी को नहीं पता !!
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