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रविवार, 20 मार्च 2016

''विश्व गौरेया दिवस' पर विशेष : लौट आओ नन्ही गौरेया


याद कीजियेअंतिम बार आपने गौरैया को अपने आंगन या आसपास कब चीं-चीं करते देखा था। कब वो आपके पैरों के पास फुदक कर उड़ गई थी। सवाल जटिल हैपर जवाब तो देना ही पड़ेगा। गौरैया व तमाम पक्षी हमारी संस्कृति और परंपराओं का हिस्सा रहे हैंलोकजीवन में इनसे जुड़ी कहानियां व गीत लोक साहित्य में देखने-सुनने को मिलते हैं। कभी सुबह की पहली किरण के साथ घर की दालानों में ढेरों गौरैया के झुंड अपनी चहक से सुबह को खुशगंवार बना देते थे। नन्ही गौरैया के सानिध्य भर से बच्चों को चेहरे पर मुस्कान खिल उठती थी, पर अब वही नन्ही गौरैया विलुप्त होती पक्षियों में शामिल हो चुकी है और उसका कारण भी हमीं ही हैं। गौरैया का कम होना संक्रमण वाली बीमारियों और परिस्थितिकी तंत्र बदलाव का संकेत है। बीते कुछ सालों से बढ़ते शहरीकरणरहन-सहन में बदलावमोबाइल टॉवरों से निकलने वाले रेडिएशनहरियाली कम होने जैसे कई कारणों से गौरैया की संख्या कम होती जा रही है।
बचपन में घर के बड़ों द्वारा चिड़ियों के लिए दाना-पानी रखने की हिदायत सुनी थीपर अब तो हमें उसकी फिक्र ही नहीं। नन्ही परी गौरैया अब कम ही नजर आती है। दिखे भी कैसेहमने उसके घर ही नहीं छीन लिए बल्कि उसकी मौत का इंतजाम भी कर दिया। हरियाली खत्म कर कंक्रीट के जंगल खड़े किएखेतों में कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल कर उसका कुदरती भोजन खत्म कर दिया और अब मोबाइल टावरों से उनकी जान लेने पर तुले हुए हैं। फिर क्यों गौरैया हमारे आंगन में फुदकेगीक्यों वह मां के हाथ की अनाज की थाली से अधिकार के साथ दाना चुराएगी?
कुछेक साल पहले तक गौरेया घर-परिवार का एक अहम हिस्सा होती थी। घर के आंगन में फुदकती गौरैयाउनके पीछे नन्हे-नन्हे कदमों से भागते बच्चे। अनाज साफ करती मां के पहलू में दुबक कर नन्हे परिंदों का दाना चुगना और और फिर फुर्र से उड़कर झरोखों में बैठ जाना। ये नजारे अब नगरों में ही नहीं गांवों में भी नहीं दिखाई देते।
भौतिकवादी जीवन शैली ने बहुत कुछ बदल दिया है। फसलों में कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से परिंदों की दुनिया ही उजड़ गई है। गौरैया का भोजन अनाज के दाने और मुलायम कीड़े हैं। गौरैया के चूजे तो केवल कीड़ों के लार्वा खाकर ही जीते हैं। कीटनाशकों से कीड़ों के लार्वा मर जाते हैं। ऐसे में चूजों के लिए तो भोजन ही खत्म हो गया है। फिर गौरैया कहाँ से आयेगी ?
गौरैया आम तौर पर पेड़ों पर अपने घोंसले बनाती है। पर अब तो वृक्षों की अंधाधुंध कटाई के चलते पेड़-पौधे लगातार कम होते जा रहे हैं। गौरैया घर के झरोखों में भी घोंसले बना लेती है। अब घरों में झरोखे ही नहीं तो गौरैया घोंसला कहां बनाए। मोबाइल टावर से निकलने वाली तरंगेंअनलेडेड पेट्रोल के इस्तेमाल से निकलने वाली जहरीली गैस भी गौरैयों और अन्य परिंदों के लिए जानलेवा साबित हो रही है। ऐसे में गौरैया की घटती संख्या पर्यावरण प्रेमियों के लिए चिंता और चिंतन दोनों का विषय है। इधर कुछ वर्षों से पक्षी वैज्ञानिकों एंव सरंक्षणवादियों का ध्यान घट रही गौरैया की तरफ़ गया। नतीजतन इसके अध्ययन व सरंक्षण की बात शुरू हुईजैसे की पूर्व में गिद्धों व सारस के लिए हुआ। गौरैया के संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक करने हेतु तमाम कदम उठाये जा रहे हैं।

जैव-विविधता के संरक्षण के लिए भी गौरैया का होना निहायत जरुरी है। हॉउस स्पैरो के नाम से मशहूर गौरैया परिवार की चिड़िया हैजो विश्व के अधिकांशत: भागों में पाई जाती है। इसके अलावा सोमालीसैक्सुएलस्पेनिशइटेलियनग्रेटपेगुडैड सी स्पैरो इसके अन्य प्रकार हैं। भारत में असम घाटीदक्षिणी असम के निचले पहाड़ी इलाकों के अलावा सिक्किम और देश के प्रायद्वीपीय भागों में बहुतायत से पाई जाती है। गौरैया पूरे वर्ष प्रजनन करती हैविशेषत: अप्रैल से अगस्त तक। दो से पांच अंडे वह एक दिन में अलग-अलग अंतराल पर देती है। नर और मादा दोनों मिलकर अंडे की देखभाल करते हैं। अनाजबीजोंबैरीफलचैरी के अलावा बीटल्सकैटरपीलर्सदिपंखी कीटसाफ्लाइबग्स के साथ ही कोवाही फूल का रस उसके भोजन में शामिल होते हैं। गौरैया आठ से दस फीट की ऊंचाई परघरों की दरारों और छेदों के अलावा छोटी झाड़ियों में अपना घोसला बनाती हैं।
गौरैया को बचाने के लिए भारत की 'नेचर्स फोरएवर सोसायटी ऑफ इंडियाऔर 'इको सिस एक्शन फाउंडेशन फ्रांसके साथ ही अन्य तमाम अंतरराष्ट्रीय संस्थानों ने मिलकर 20 मार्च को 'विश्व गौरैया दिवसमनाने की घोषणा की और वर्ष 2010 में पहली बार 'विश्व गौरैया दिवसमनाया गया। इस दिन को गौरैया के अस्तित्व और उसके सम्मान में रेड लेटर डे (अति महत्वपूर्ण दिन) भी कहा गया। इसी क्रम में भारतीय डाक विभाग ने जुलाई 2010 को गौरैया पर डाक टिकट जारी किए। कम होती गौरैया की संख्या को देखते हुए अक्टूबर 2012 में दिल्ली सरकार ने इसे राज्य पक्षी घोषित किया। वहीं गौरैया के संरक्षण के लिए 'बम्बई नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटीने इंडियन बर्ड कंजरवेशन नेटवर्क के तहत ऑन लाइन सर्वे भी आरंभ किया हुआ है। कई एनजीओ गौरैया को सहेजने की मुहिम में जुट गए हैंताकि इस बेहतरीन पक्षी की प्रजातियों से आने वाली पीढियाँ भी रूबरू हो सके। देश के ग्रामीण क्षेत्र में गौरैया बचाओ के अभियान के बारे जागरूकता फैलाने के लिए रेडियोसमाचारपत्रों का उपयोग किया जा रहा है। कुछेक संस्थाएं गौरैया के लिए घोंसले बनाने के लिए भी आगे आई हैं। इसके तहत हरे नारियल में छेद करअख़बार से नमी सोखकर उस पर कूलर की घास लगाकर बच्चों को घोसला बनाने का हुनर सिखाया जा रहा है । ये घोसले पेड़ों के वी शेप वाली जगह पर गौरैया के लिए लगाए जा रहे हैं।
वाकई आज समय की जरुरत है कि गौरैया के संरक्षण के लिए हम अपने स्तर पर ही प्रयास करें। कुछेक पहलें गौरैया को फिर से वापस ला सकती हैं। मसलनघरों में कुछ ऐसे झरोखे रखेंजहां गौरैया घोंसले बना सकें। छत और आंगन पर अनाज के दाने बिखेरने के साथ-साथ गर्मियों में अपने घरों के पास पक्षियों के पीने के लिए पानी रखनेउन्हें आकर्षित करने हेतु आंगन और छतों पर पौधे लगाने, जल चढ़ाने में चावल के दाने डालने की परंपरा जैसे कदम भी इस नन्ही पक्षी को सलामत रख सकते हैं। इसके अलावा जिनके घरों में गौरैया ने अपने घोसलें बनाए हैंउन्हें नहीं तोड़ने के संबंध में आग्रह किया जा सकता है। फसलों में कीटनाशकों का उपयोग नहीं करने और वाहनों में अनलेडेड पेट्रोल का इस्तेमाल न करने जैसी पहलें भी आवश्यक हैं।

गौरैया सिर्फ एक चिड़िया का नाम नहीं हैबल्कि हमारे परिवेशसाहित्यकलासंस्कृति से भी उसका अभिन्न सम्बन्ध रहा है। आज भी बच्चों को चिड़िया के रूप में पहला नाम गौरैया का ही बताया जाता है। साहित्यकला के कई पक्ष इस नन्ही गौरैया को सहेजते हैंउसके साथ तादात्म्य स्थापित करते हैं। गौरैया की कहानीबड़ों की जुबानी सुनते-सुनते आज उसे हमने विलुप्त पक्षियों में खड़ा कर दिया है। नई पीढ़ी गौरैया और उसकी चीं-चीं को इंटरनेट पर खंगालती नजर आती हैऐसा लगता है जैसे गौरैया रूठकर कहीं दूर चली गई हो। जरुरत है कि गौरैया को हम मनाएँउसके जीवनयापन के लिए प्रबंध करें और एक बार फिर से उसे अपनी जीवन-शैली में शामिल करेंताकि हमारे बच्चे उसके साथ किलकारी मार सकें और वह उनके साथ फुदक सके !!

आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 
Akanksha Yadav @ http://shabdshikhar.blogspot.com/
(साभार : डेली न्यूज एक्टिविस्ट, लखनऊ, 19  मार्च 2016) 


(साभार : दैनिक युगपक्ष, बीकानेर, 20 मार्च 2016) 

मंगलवार, 8 मार्च 2016

मिलिए ब्लॉगिंग क्वीन्स से


किसी ने सोचा नहीं होगा कि ब्लाॅगिंग या चिट्ठाकारी भी शोहरत और दौलत दिला सकती है, लेकिन अब ऐसा हकीकत में हो रहा है। केवल एक ब्लाॅग आपको ब्लाॅगिंग किंग या क्वीन बना सकता है। ब्लाॅगिंग में जहाँ पुरूष सक्रिय हैं, वही महिलाएं भी अब इसमें नाम व धन कमा रही हैं। महिलाएं कुकिंग, लाइफस्टाइल, इंटीरियर, फैशन, बाॅलीवुड, इंस्पिरेशनल आदि कई तरह के ब्लाॅग्स के जरिए प्रसिद्धि पा रही हैं और उन्होंने इसे कैरियर बना लिया है, जो उन्हें शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा रहा है। आइए मिलते हैं कुछ ऐसी ही महिला ब्लाॅगर्स से.......

सबसे कम उम्र की ब्लाॅगर : अक्षिता यादव

25 मार्च 2007 को कानपुर में जन्मी पाखी यानी अक्षिता यादव भारत की सबसे कम उम्र की ब्लाॅगर के रूप में राष्ट्रीय बाल पुरस्कार विजेता का सम्मान पा चुकी हैं । अक्षिता की ब्लाॅगर मां ने 24 जून 2009 को पाखी की दुनिया (http://www.pakhi-akshita.blogspot.in)  नाम से अक्षिता का ब्लाॅग बनाया। इस ब्लाॅग पर तमाम प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई और 100 से ज्यादा देशों में इसे देखा-पढ़ा जाता है। अक्षिता और उसका ब्लाॅग पाखी की दुनिया फेसबुक (https://www.facebook.com/AkshitaaSingh) पर भी उपलब्ध है। 

ब्लाॅगिंग को दे रहीं नए मुकाम : आकांक्षा यादव

एक साहित्यकार और ब्लाॅगर है आकांक्षा । वह मूलतः उत्तर प्रदेश  की हैं  लेकिन राजस्थान से भी उनका नाता है। उन्हें हिन्दी में ब्लाॅग लिखने वाली शुरूआती महिलाओं में गिना जाता है। इनके ब्लाॅग को अब तक लाखों लागों ने पढ़ा है और करीब सौ से ज्यादा देशों में इन्हें देखा-पढ़ा जाता है। उनके ब्लाॅग 'शब्द-शिखर' (http://shabdshikhar.blogspot.com) को वर्ष 2015 में हिन्दी का सबसे लोकप्रिय ब्लाॅग चुना गया।

प्रस्तुति : मधुलिका सिंह 

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'अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस' पर राजस्थान पत्रिका (8 मार्च, 2016) में 'मिलिए ब्लॉगिंग क्वीन्स से' के तहत हमारी चर्चा - सबसे कम उम्र की ब्लॉगर : अक्षिता यादव और ब्लॉगिंग को दे रहीं नए मुकाम : आकांक्षा यादव .... आभार !!

Courtesy : http://epaper.patrika.com/742854/Pariwar/08-03-2016#dual/4/1

सोमवार, 7 मार्च 2016

'अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस' और शिव का अर्द्धनारीश्वर रूप

 यह अजीब संयोग है कि 'अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस' से ठीक एक दिन पूर्व 'महाशिवरात्रि' का पर्व है। ऐसी मान्यता  है कि इसी दिन भगवान शिव का विवाह हुआ था। भगवान शिव का एक रूप अर्धनारीश्वर का भी है। पुरुष (शिव) एवं स्त्री (शक्ति) का एका होने के कारण शिव नर भी हैं और नारी भी, अतः वे अर्धनरनारीश्वर हैं।

जब ब्रह्मा ने सृजन का कार्य आरंभ किया तब उन्होंने पाया कि उनकी रचनायें अपने जीवनोपरांत नष्ट हो जायंगी तथा हर बार उन्हें नए सिरे से सृजन करना होगा। गहन विचार के उपरांत भी वो किसी भी निर्णय पर नहीं पहुँच पाये। तब समस्या सामाधान हेतु वे शिव की शरण में पहुँचे। उन्होंने शिव को प्रसन्न करने हेतु कठोर तप किया। ब्रह्मा की कठोर तप से शिव प्रसन्न हुए। ब्रह्मा की समस्या के समाधान हेतु भगवान शिव अर्धनारीश्वर स्वरूप में प्रकट हुए। अर्ध भाग में वे शिव थे तथा अर्ध में शिवा। अपने इस स्वरूप से शिव ने ब्रह्मा को प्रजननशील प्राणी के सृजन की प्रेरणा प्रदान की। साथ ही साथ उन्होंने पुरूष एवं स्त्री के समान महत्व का भी उपदेश दिया। 

शक्ति शिव की अविभाज्य अंग हैं। शिव नर के प्रतीक हैं तो शक्ति नारी की। वे एक दूसरे के पूरक हैं। शिव के बिना शक्ति का अथवा शक्ति के बिना शिव का कोई अस्तित्व ही नहीं है। शिव अकर्ता हैं। वो संकल्प मात्र करते हैं; शक्ति संकल्प सिद्धी करती हैं।

 ..... आप सभी को ''महाशिवरात्रि'' और ''अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस'' की हार्दिक शुभकामनाएँ !!

आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 
Akanksha Yadav @ www.shabdshikhar.blogspot.com

सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

रचनाधर्मी का 'शब्द-शिखर'

जब से ब्लॉग राइटिंग का ट्रेंड  शुरू हुआ है, लोगों की लेखन में दिलचस्पी बढ़ गई है। कुछ लोग कभी-कभार अपने ब्लॉग पर पोस्ट करते हैं तो कुछ ऐसे भी हैं, जो ब्लॉग को नियमित रूप से अपडेट करते रहते हैं । इसमें  कोई दो राय नहीं हैं कि  ब्लॉग ने उन लोगों को लिखने का मंच दिया हैं, जिनके मन में विचार तो कुलबुलाते रहते थे, लेकिन उन्हें अभिव्यक्त करने का कोई जरिया उनके पास नहीं था । ऐसे में ब्लॉग उनके लिए एक वरदान के रूप में सामने आया । यही वजह है कि अब वे ब्लॉग पर रोजमर्रा के छोटे–मोटे अनुभवों को साझा करने से लेकर अंतर्राष्ट्रीय, राजनीतिक, सामाजिक मुद्दों पर भी बेबाक राय प्रकट कर रहे हैं । जिन्हें कहानी, कविताएँ, गीत, गज़ल, नज़्म, आदि लिखने का शौक है, वे भी अपनी रचनाओं को ब्लॉग के माध्यम  से दूसरों तक पहुँचा रहे हैं । 

आज जो ब्लॉग चुना है, उसकी ब्लॉगर आकांक्षा यादव भी ब्लॉगिंग में काफी सक्रिय हैं। वे अपने ब्लॉग ‘शब्द-शिखर’ पर हर छोटे-बड़े फ़ेस्टिवल्स  पर कविताएँ लिखती हैं तो समाज से जुड़े विषयों पर भी अपनी राय प्रकट करती हैं। यही नहीं, देश-विदेश की कई छोटी-बड़ी खबरों को भी ब्लॉग पर साझा करती हैं। ब्लॉग पर नज़र डालें तो ‘वे कैसे लोग होते  हैं, जो बम बनाते हैं, उनसे बेहतर तो वो कीड़े होते हैं, जो रेशम बनाते हैं !!’ जैसी पंक्तियाँ लोगों को एक नई राह दिखाती हैं और भाईचारे से रहने का संदेश देती हैं।  फ़ेसबुक के सीईओ मार्क जकरबर्ग के बेटी के जन्म की खुशी में  शेयर्स दान करने की घोषणा, राजनीति में बढ़ती महिलाओं की भागीदारी, अब महिलाएं भी उड़ाएंगी लड़ाकू विमान जैसी खबरों को भी ब्लॉगर ने प्रमुखता से साझा किया है। बिना लाग–लपेट के सुलभ भाव-भंगिमा से जीवन की सच्चाई को बयां करने को वे अपनी लेखनी की शक्ति मानती हैं। 

ब्लॉग का पता है - http://shabdshikhar.blogspot.in/
-आर्यन शर्मा

(21 फ़रवरी, 2016 को राजस्थान पत्रिका के साप्ताहिक स्तंभ me.next के नियमित स्तंभ web blog में 'शब्द शिखर' की चर्चा। इससे पूर्व भी इसी कॉलम में  6 जुलाई 2013 को  'बदलाव की एक लहर' शीर्ष से 'शब्द-शिखर' ब्लॉग की चर्चा की जा चुकी है। .... आभार !!)

रविवार, 14 फ़रवरी 2016

यही प्यार है......



दो अजनबी निगाहों का मिलना 
मन ही मन में गुलों का खिलना 
हाँ, यही प्यार है............ !! 

आँखों ने आपस में ही कुछ इजहार किया 
हरेक मोड़ पर एक दूसरे का इंतजार किया 
हाँ, यही प्यार है............ !! 

आँखों की बातें दिलों में उतरती गई 
रातों की करवटें और लम्बी होती गई 
हाँ, यही प्यार है............ !! 

सूनी आँखों में किसी का चेहरा चमकने लगा 
हर पल उनसे मिलने को दिल मचलने लगा 
हाँ, यही प्यार है............ !! 

चाँद व तारे रात के साथी बन गये 
न जाने कब वो मेरी जिन्दगी के बाती बन गये 
हाँ, यही प्यार है............ !!


(डायरी के पुराने पन्नों को पलटिये तो बहुत कुछ सामने आकर घूमने लगता है. ऐसे ही इलाहाबाद विश्विद्यालय में अध्ययन के दौरान प्यार को लेकर यह कविता जीवन साथी कृष्ण कुमार यादव जी ने लिखी थी. यहाँ पर आप सभी के साथ शेयर कर रही  हूँ)



शनिवार, 6 फ़रवरी 2016

अब घर की बड़ी बिटिया होगी परिवार की मुखिया

नारी सशक्तिकरण अब सिर्फ एक जुमला भर नहीं है, बल्कि व्यवहारिक जीवन में भी इसे प्रभावी माना जाने लगा है। जब महिलाएं घर से लेकर बाहर तक के कार्यों को करने से नहीं हिचकतीं और तमाम प्रतिष्ठित पदों पर विराजमान होकर नेतृत्व कर रही हैं, फिर भला उन्हें घर में कैसे रोक जा सकता है। इसी तर्ज पर सामाजिक बदलाव की दिशा में बेमिसाल फैसला देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि, जिस घर में बड़ी बेटी होगी, वही घर की 'कर्ता धर्ता' होगी। कोर्ट ने कहा- 'मुखिया की गैर मौजूदगी में घर में जो सबसे बड़ा होगा वही उस घर का कर्ता होगा। फिर चाहे वह बेटी ही क्यों न हो.' कोर्ट ने अपने फैसले में 'कर्ता' यानी मुखिया शब्द का इस्तेमाल किया है.

बराबरी का हक
सामाजिक बदलाव का फैसला जस्टिस नाजमी वजीरी ने सुनाया.  कोर्ट ने कहा, 'यदि पहले पैदा होने पर कोई पुरुष मुखिया के कामकाज संभाल सकता है तो ठीक ऐसा ही औरत भी कर सकती है. हिंदू संयुक्त परिवार की किसी महिला को ऐसा करने से रोकने वाला कोई कानून भी नहीं है.'

पुरुष सत्ता पर चोट
कोर्ट ने माना कि मुखिया की भूमिका में रहते हुए पुरुषों के जिम्मे बड़े-बड़े काम आ जाते हैं. इतना ही नहीं, वे प्रॉपर्टी, रीति-रिवाज और मान्यताओं से लेकर परिवार के जटिल और अहम मुद्दों पर भी अपने फैसले लागू करने लगते हैं. इस लिहाज से यह फैसला पितृसत्तात्मक समाज की उस धारा पर चोट करता है और उसे तोड़ने वाला है.

बड़ी बेटी ने ही किया था केस
हाई कोर्ट ने यह फैसला दिल्ली के एक कारोबारी परिवार की बड़ी बेटी की ओर से दाखिल केस पर सुनाया. उसने पिता और तीन चाचाओं की मौत के बाद केस दायर कर दावा किया था कि वह घर की बड़ी बेटी है. इस लिहाज से मुखिया वही हो. उसने याचिका में अपने बड़े चचेरे भाई के दावे को चुनौती दी थी, जिसने खुद को कर्ता घोषित कर दिया था.

क्यों अहम है यह फैसला?

2005 में हिंदू उत्तराधिकार कानून  में संशोधन कर धारा 6 जोड़ी गई थी. इसके जरिए महिलाओं को पैतृक संपत्ति में बराबर का हक दिया गया था. पर घर के फैसले करने का हक अब मिला.

फैसले के बाद अब बड़ी बेटी के हाथ में न सिर्फ पैतृक संपत्ति और प्रॉपर्टी से जुड़े हक होंगे, बल्कि वह घर-परिवार के तमाम मुद्दों पर अपनी बात कानूनी हक के साथ रख पाएगी.

फैसला सामाजिक बदलाव का प्रतीक है, मिसाल है. बताता है कि जो बेटी पिता को कंधा दे सकती है, वह पिता की भूमिका में भी हो सकती है और किसी बेटे से कमतर नहीं है.

पुराने जमाने से ही परंपरा रही है कि घर का कर्ता यानी मुखिया पुरुष रहता आया है. फिर चाहे वह घर में सबसे छोटा ही क्यों न हो. यह फैसला इस परंपरा को तोड़ने वाला है.

'आत्मनिर्भरता की मिसाल है औरत'

फैसला सुनाते वक्त जस्टिस वजीरी ने कहा कि कानून के मुताबिक सभी को समान अधिकार प्राप्त हैं. फिर न जाने अब तक महिलाओं को 'कर्ता' बनने लायक क्यों नहीं समझा गया? जबकि आजकल की महिलाएं हर क्षेत्र में कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं और आत्मनिर्भता की मिसाल हैं. ऐसी कोई वजह नहीं है कि महिलाओं को घर की मुखिया बनने से रोका जाए. 1956 का पुराना कानून 2005 में ही बदल चुका है. अब जब कानून बराबरी का हक देता है तो अदालतों को भी ऐसे मामलों में सतर्कता बरतते हुए फैसला करना चाहिए.



शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

भारत में अर्द्धसैनिक बल की कमान पहली बार महिला को : अर्चना रामासुंदरम बनीं सशस्त्र सीमा बल की डायरेक्टर जनरल


 देश में पहली बार किसी अर्द्धसैनिक बल की कमान किसी महिला को सौंपी गयी है। तमिलनाडु कैडर की वरिष्ठ महिला आईपीएस अधिकारी अर्चना रामासुंदरम को 1 फरवरी, 2016  को सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) का डायरेक्टर जनरल  नियुक्त किया गया है। गौरतलब है कि देश में पांच अर्द्धसैनिक बल- एसएसबी, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ), सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ), केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) और भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) हैं। इनमें कभी कोई महिला प्रमुख नहीं रहीं।

कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) द्वारा जारी आदेश के अनुसार, 58 वर्षीय अर्चना रामासुंदरम फिलहाल राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की निदेशक हैं। उन्हें अगले साल 30 सितंबर को उनके सेवानिवृत्त होने तक एसएसबी प्रमुख के तौर पर नियुक्त किया गया है। एसएसबी पर नेपाल और भूटान से लगे देश के सीमावर्ती क्षेत्रों की सुरक्षा की जिम्मेदारी है।

तमिलनाडु कैडर की अधिकारी अर्चना रामासुंदरम 2014 में उस समय खबरों में रहीं थीं, जब उन्हें सीबीआई में अतिरिक्त निदेशक नियुक्त किया गया था। उनकी नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी गयी थी, जिसके बाद उन्हें एनसीआरबी का प्रमुख बना दिया गया था।

अर्चना रामासुंदरम मूल रूप से उत्तर प्रदेश के  बलिया जनपद की रहने वाली हैं। उनके पिता जयपुर में न्यायिक सेवा में कार्यरत थे। अर्चना के मुताबिक अगर वह एक साधारण परिवार से उठकर पुलिस के शीर्ष पद तक पहुंच सकती हैं तो कोई भी लड़की यह काम कर सकती है।अर्चना का मानना है कि यह एक सच्चाई है कि वह इस स्तर तक पहुंचने वाली पहली महिला अधिकारी हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सिर्फ महिला होने के नाते वह इस स्तर तक पहुंची हैं। इसके लिए वह पूरे कैरियर में कठिन समय से भी
गुजरी हैं। उनके पति तमिलनाडु से हैं और उसी कैडर में आईएसएस अधिकारी रहे हैं। रामसुंदरम 1980 बैच की केरल कैडर की आईपीएस अधिकारी हैं। अर्चना रामासुंदरम ने कहा कि अब हरेक स्तर पर आम राय है कि सभी क्षेत्रों में महिलाओं की भागेदारी बढ़े। यह युवा लड़कियों के आगे आने का सुनहरा दौर है। उन्हें उनके पिता ने आईपीएस बनने के लिए खूब प्रोत्साहित किया था। अपने पुश्तैनी शहर बलिया का जिक्र करते हुए रामसुंदरम के कहा कि वहां की आज की लड़कियों को देख कर लगता है कि उन्हें भी कैरियर के सभी विकल्प आजमाने का पूरा मौका मिलना चाहिए।

मंगलवार, 26 जनवरी 2016

गणतंत्र दिवस के पावन पर्व पर हार्दिक बधाई


 जब हम तिरंगे के नीचे खड़े होते हैं
तो हमारे ऊपर बस एक झंडा नहीं होता,

हमारे ऊपर होते हैं 121 करोड़ धड़कते दिल,

और वो सारे चेहरे
जो कभी हमने देखे हैं,

हमारे ऊपर होते हैं
वो कुछ मुट्ठी भर लोग
जिनकी वजह से आज हम
आजाद हवा में सांस लेते है,

और कुछ सपने
कुछ हसरतें,
जो जनम लेती हैं
उसी तिरंगे तले

ये तीन रंग के कपड़े का बस एक टुकड़ा भर नहीं है
ये तिरंगा दरअसल एक ज़िंदा इतिहास है,

एक इतिहास
जो धड़कते दिलों के एहसासों से लिखा गया है।

तभी तो किसी ने बहुत खूबसूरती से लिखा है -

ज़माने भर में मिलते हैं आशिक कई,
मगर वतन से खूबसूरत कोई सनम नहीं होता !
नोटों में भी लिपट कर, सोने में सिमटकर मरे हैं कई,
मगर तिरंगे से खूबसूरत कोई कफ़न नहीं होता !!


67 वें गणतंत्र दिवस के पावन पर्व पर आप सभी को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें !!
जय हिन्द ! जय भारत !!

- आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 
Akanksha Yadav @ http://shabdshikhar.blogspot.in/

शनिवार, 23 जनवरी 2016

चपरासी की बेटी बनी टॉपर, पीएम मोदी ने किया सम्मानित

प्रतिभा किसी चीज की मोहताज नहीं होती और न ही किसी भी तरह का रोड़ा उसकी तरक्की के रास्ते को रोक सकता है. ऐसा ही कुछ कर दिखाया है बाबा भीमराव आंबेडकर यूनिवर्सिटी (बीबीएयू), लखनऊ  की छात्र रत्ना रावत ने. एमसीए स्टूडेंट रत्ना रावत के पिता बीबीएयू में ही चपरासी हैं और अब रत्ना ने एमसीए में टॉप कर अपने पिता का सिर गर्व से उंचा कर दिया है.  रत्ना के पिता बृज मोहन बीबीएयू में ही चपरासी के पद पर कार्यत हैं. उन्हें अपनी बेटी पर बेहद गर्व है. और हो भी क्यों न क्योंकि अब यूनिवर्सिटी में बृजमोहन को लोग चपरासी के तौर पर नहीं बल्कि टॉपर रत्ना रावत की बेटी के तौर पर जानते हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 22 जनवरी को रत्ना को  गोल्ड मेडल से सम्मानित किया। 

 रत्ना का यह सफर इतना आसान भी नहीं रहा।  इस मुकाम तक पहुँचना कम कठिनाइयों से भरा नहीं था. रायबरेली रोड स्थित कल्लीपूरव गांव के एक छोटे से मकान में रहने वाली रत्ना कहती हैं कि उनके इलाके में बिजली की बहुत समस्या है, ऐसे में  उन्हें अपनी पढ़ाई मोमबत्ती की रोशनी में करनी पड़ी.

शुक्रवार, 15 जनवरी 2016

बम या रेशम

 वे कैसे लोग होते हैं, 
जो बम बनाते हैं,
उनसे बेहतर तो,
वो कीड़े होते हैं, 
जो रेशम बनाते हैं !!



गुरुवार, 14 जनवरी 2016

सूर्य देव के उत्तरायण पर्व मकर संक्रांति पर शुभकामनाएं


मकर संक्रांति की हर्षित बेला पर,
खुशियां मिले अपार। 
यश, कीर्ति, सम्मान मिले, 
और बढे सत्कार। 
शुभ-शुभ रहे हर दिन हर पल,
शुभ-शुभ रहे विचार। 
उत्साह बढ़ेे चित चेतन में,
निर्मल रहे आचार। 
सफलतायें नित नयी मिले,
बधाई बारम्बार। 
मंगलमय हो काज आपके,
सुखी रहे परिवार।  

आप सभी को मकर संक्रान्ति पर्व पर हार्दिक शुभकामनायें। सूर्य देव के उत्तरायण होने पर भारतवर्ष के उजाले में वृद्धि के प्रतीक पर्व "मकर संक्रान्ति" पर आप सब के जीवन भी प्रकाशमान हों, ऐसी शुभेच्छा के साथ आप सभी को मंगलकामनाएं एवं बधाई !!

शुक्रवार, 1 जनवरी 2016

नव वर्ष-2016 का हार्दिक अभिनन्दन



एक-खूबसूरती...! 
एक-ताजगी..! 
एक-सपना..! 
एक-सचाई..! 
एक-कल्पना..! 
एक-अहसास..! 
एक-आस्था..! 
एक-विश्वास..!

(नव वर्ष पर सूरज की नई किरणों के साथ बिटिया अपूर्वा का बाल-मन प्रफुल्लित) 

यही है एक अच्छे साल की शुरुआत।

नव वर्ष-2016 का हार्दिक अभिनन्दन। 

!! नया साल आप सभी के जीवन में नया उल्लास और नई खुशियाँ लेकर आए !!

शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015

निर्भया का कातिल अभी जिन्दा है

निर्भया को 3 साल बाद भी इंसाफ नहीं मिला । कानून की आड़ में नाबालिग बलात्कारी जेल से रिहा हो गया । मोमबत्तियां जलती रहीं, बयानबाजी होती रही, न्यायिक सक्रियता से लेकर मन की बात होती रही, बेटी बचाओ जैसे जुमले हवा में तैरते रहे....पर सब मिलकर भी एक बलात्कारी को जेल के अंदर नहीं रख सके। और जब तक संसद ने कानून पास किया, तब तक काफी देर हो चुकी थी। ....निर्भया की माँ ने बहुत सही कहा कि जब बलात्कार करने वाला यह नहीं देखता कि सामने 5 साल की बच्ची है या 65 साल की बूढ़ी औरत...तो फिर कानून रेप करने वाले की उम्र क्यों देखता है ?


इसी बात पर पतिदेव कृष्ण कुमार जी के फेसबुक वाल से भी कुछेक प्रासंगिक बातें -

सहिष्णुता-असहिष्णुता के नाम पर सैकड़ों सम्मान लौटा दिए गए, पर एक बिटिया निर्भया का गुनहगार छूट गया, किसी ने सरकारी सम्मान लौटाने की जहमत नहीं जुटाई। आख़िर कैसी संवेदनशीलता है यह।

सहमी सी हैं तितलियां सभी 
खौफ में हर परिन्दा है
नकाब इन्सां का चेहरे पे 
यहां हर शख्स दरिन्दा है
निर्भया माफ कर देना 
कि हम बहुत शर्मिन्दा हैं
बेटियों घर से जरा 
संभलकर निकलना 
कि अभी निर्भया का 
कातिल जिन्दा है !!

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

फेसबुक के CEO मार्क जुकरबर्ग बेटी के जन्म की ख़ुशी में दान करेंगे अपने 99% शेयर्स

बेटियाँ अपने यहाँ लक्ष्मी का रूप मानी जाती हैं।  अपने देश भारत में यह बात भले ही लोगों को किताबी लगती हो पर दुनिया की सबसे मशहूर  सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक के को-फाउंडर और सीईओ मार्क जुकरबर्ग इसे पूरी तरह मानते और पालन करते हैं।  तभी तो अपनी बेटी मैक्स के जन्म लेने की खुशी में उन्होंने  बड़ी चैरिटी का एलान किया है । यानी फेसबुक में अपने और पत्नी प्रिसिला चान के नाम जितने शेयर हैं, उसका 99 फीसदी हिस्सा आने वाले वर्षों में वे डोनेट करेंगे।

जुकरबर्ग अपनी बेटी के लिए दुनिया को बेहतर जगह बनाने के मकसद से शेयर डोनेट करना चाहते हैं। इस चैरिटी का नाम होगा चान-जुकरबर्ग इनिशिएटिव। जुकरबर्ग ने यह एलान अपने फेसबुक पेज पर किया। इस मैसेज को अब तक 3.60 लाख से ज्यादा लाइक मिल चुके हैं। बता दें कि जुकरबर्ग ने पहले ही ‘गिविंग प्लेज’ साइन किया था। ‘गिविंग प्लेज’ यानी दुनिया के अमीर लोगों की वह प्रतिबद्धता जिसके तहत वे अपनी आधी से ज्यादा दौलत दान करेंगे।
वर्तमान में  फेसबुक की कुल पूंजी 303 अरब डॉलर यानी 19 लाख करोड़ रुपए है। इनमें से जुकरबर्ग के पास 54 फीसदी शेयर हैं। इन 54 फीसदी में से 99 फीसदी शेयर अर्थात 45 अरब डॉलर यानि 2.85 लाख करोड़ रूपये वे डोनेट करने वाले हैं। गौरतलब है कि यह रकम  नेपाल, अफगानिस्तान और साइप्रस जैसे देशों की जीडीपी का दोगुना है।  तीनों देशों की जीडीपी 20 अरब डॉलर के आसपास है। जुकरबर्ग अपने शेयरों का उतना हिस्सा डोनेट करेंगे, जितना दुनिया के 106 देशों की जीडीपी भी नहीं है। आईएमएफ वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के 106 देशों की जीडीपी 45 अरब डॉलर से कम है।

फेसबुक के मार्क जकरबर्ग अपनी इस अनूठी पहल से  दुनिया के सबसे कम उम्र के दानदाता बन गए हैं। वे मात्र 31 साल के हैं। उनसे पहले बर्कशायर हैथवे के वॉरेन बफेट ने 2006 में गेट्स फाउंडेशन को 31 अरब डॉलर का डोनेशन देने का फैसला किया था। तब बफेट 76 साल के थे। इसी प्रकार माइक्रोसॉफ्ट के को-फाउंडर बिल गेट्स ने 2000 में जब बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन की शुरुआत की थी, तब उनकी उम्र 45 साल थी।



फेसबुक में ऐसा नियम है कि यहां काम करने वाला कोई भी अमेरिकी कर्मचारी मैटरनिटी और पैटरनिटी के लिए चार महीने का अवकाश ले सकता है। पत्नी प्रिसिला के गर्भवती होने के बाद जुकरबर्ग ने भी दो महीने की छुट्टी लेने का फैसला किया था। हालांकि, कंपनी के नियम के मुताबिक, वे चार महीने की छुट्टी भी ले सकते थे।

फ़िलहाल, अपनी बेटी के जन्म की जानकारी  जुकरबर्ग ने वाइफ प्रिसिला और बेटी मैक्स के साथ फेसबुक पर फोटो शेयर करके की। उन्होंने बेटी के नाम एक प्यारा सा पत्र भी लिखा। उसका हिंदी रूपांतरण कुछ यूँ होगा -


डियर मैक्स,
तुम्हारी मां और मेरे पास यह बताने के लिए लफ्ज नहीं हैं कि तुमने हमारे फ्यूचर के लिए कितनी उम्मीदें दे दी हैं। तुम्हारी नई जिंदगी वादों से भरी है। हमें उम्मीद है कि तुम खुश रहोगी, सेहतमंद रहोगी, ताकि दुनिया को पूरी तरह एक्सप्लोर कर सकोगी। तुमने हमें दुनिया को उम्मीद के साथ देखने की एक वजह दे दी है।

सभी पेरेंट्स की तरह हम भी चाहते हैं कि तुम हमसे ज्यादा बेहतर तरीके से जिंदगी बिताओ। सुर्खियां भले ही ये बताती हों कि क्या-कुछ गलत हो रहा है, लेकिन दुनिया बेहतर होती जा रही है। हेल्थ सुधर रही है। गरीबी कम हो रही है। नॉलेज बढ़ रहा है। लोग आपस में जुड़ रहे हैं। हर फील्ड में हो रही टेक्नोलॉजी की प्रोग्रेस यह बताती है कि तुम्हारी जिंदगी आज की हमारी जिंदगी से कहीं बेहतर होगी।

हम इसके लिए अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे। और यह सिर्फ इसलिए नहीं होगा कि हम तुम्हें प्यार करते हैं, बल्कि यह इसलिए हाेगा, क्योंकि अगली जनरेशन के सभी बच्चों की मॉरल रिस्पॉन्सिबिलिटी हम पर है।

हम मानते हैं कि सभी की जिंदगी एक जैसी है। हमारी सोसाइटी की जिम्मेदारी है कि वह सिर्फ अभी जी रहे लोगों के लिए नहीं, बल्कि इस दुनिया में आने वाले लोगों की जिंदगी सुधारने के लिए इन्वेस्ट करे।
- मार्क
-आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 
Akanksha Yadav@ http://shabdshikhar.blogspot.in/