कहते हैं हौसले बुलंद हों तो फिर पहाड़ भी रास्ता दे देता है। इसे बखूबी सच कर दिखाया है आंध्रप्रदेश की 13 वर्षीया मालावाथ पूर्णा ने, जिसने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर चढ़कर सबसे कम उम्र में इस पर फतह करने वाली महिला का रिकार्ड बनाया है। पूर्णा ने इस चढ़ाई को चीन के सबसे खतरनाक रास्ते से तय किया है। मनोनीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट के जरिये पूर्णा को बधाई देते हुए कहा, 'इस खबर को पढ़कर बहुत खुशी हुई। हमारे युवाओं को बधाई। हमें उन पर गर्व है।'
पूर्णा आंध्रप्रदेश के खमम जिले की नौवीं कक्षा की छात्रा है। इस अभियान पर वह अपनी सहयोगी 16 वर्षीय साधनापल्ली आनंद कुमार के साथ थीं। पूर्णा और आनंद दोनों ही आंध्र प्रदेश सोशल वेलफेयर एजुकेशन सोसायटी के विद्यार्थी हैं।
52 दिनों की चढ़ाई के बार वे 25 मई, 2014 की सुबह छह बजे एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचे। पूर्णा ने एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचकर एक रिकॉर्ड कायम कर दिया है। वह इतनी ऊंचाई पर चढ़ने वाली सबसे युवा महिला बन गयी है। इन दोनों का चयन सोसायटी के 150 बच्चों में से किया गया, जिन्होंने साहसिक खेलों को चुना था। इनमें से 20 बच्चों को प्रशिक्षण के लिए दार्जिलिंग के एक प्रतिष्ठित पर्वतारोहण संस्थान में भेजा गया था और नौ बच्चों को पहले भारत-चीन सीमा पर भेजा गया। इसमें से दो विद्यार्थी ताकत और धीरज की बदौलत सबसे उच्च श्रेणी तक पहुंचने में सफल रहे, जिन्हें अप्रैल में एवरेस्ट फतह करने के लिए भेजा गया। अब ये दोनों विद्यार्थी बेस कैंप की ओर लौट रहे हैं।
पूर्णा आंध्रप्रदेश के खमम जिले की नौवीं कक्षा की छात्रा है। इस अभियान पर वह अपनी सहयोगी 16 वर्षीय साधनापल्ली आनंद कुमार के साथ थीं। पूर्णा और आनंद दोनों ही आंध्र प्रदेश सोशल वेलफेयर एजुकेशन सोसायटी के विद्यार्थी हैं।
52 दिनों की चढ़ाई के बार वे 25 मई, 2014 की सुबह छह बजे एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचे। पूर्णा ने एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचकर एक रिकॉर्ड कायम कर दिया है। वह इतनी ऊंचाई पर चढ़ने वाली सबसे युवा महिला बन गयी है। इन दोनों का चयन सोसायटी के 150 बच्चों में से किया गया, जिन्होंने साहसिक खेलों को चुना था। इनमें से 20 बच्चों को प्रशिक्षण के लिए दार्जिलिंग के एक प्रतिष्ठित पर्वतारोहण संस्थान में भेजा गया था और नौ बच्चों को पहले भारत-चीन सीमा पर भेजा गया। इसमें से दो विद्यार्थी ताकत और धीरज की बदौलत सबसे उच्च श्रेणी तक पहुंचने में सफल रहे, जिन्हें अप्रैल में एवरेस्ट फतह करने के लिए भेजा गया। अब ये दोनों विद्यार्थी बेस कैंप की ओर लौट रहे हैं।
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