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बुधवार, 2 मार्च 2011

कहाँ गया फाउण्टेन पेन..

पिछले दिनों आलमारी में रखा पुराना सामान उलट-पुलट रही थी कि नजर एक फाउण्टेन पेन पर पड़ी। वही फाउण्टेन पेन जो कभी अच्छी व स्टाइलिश राइटिंग का मानदण्ड थी। अब हम लोग भले ही डाॅट पेन या जेल पेन से लिखने लगे हों पर स्कूली दिनों में फाउण्टेन पेन ही हमारी राइटिंग की शान थी। परीक्षा में पेपर देते समय यदि पेपर या कापी में इंक गिर जाती थी तो मानते थे कि पेपर अच्छा होगा। होली का त्यौहार आते ही फाउण्टेन पेन का महत्व और भी बढ़ जाता था। एक-दूसरे की शर्ट पर इंक छिड़ककर होली मनाने का आनन्द ही कुछ और था। तब बाजार में उत्पादों की इतनी भरमार नहीं थी। जीनियस, किंगसन और इण्टर कम्पनी के पेन सर्वाधिक लोकप्रिय थे। जीनियस पेन का प्रयोग करने वाला इसके नाम के अनुरूप खुद को क्लास में सबसे जीनियस समझता था।

बीतते वक्त के साथ फाउण्टेन पेन अतीत की चीज बन गये पर अभी भी सरकारी सेवा से रिटायर्ड बुजुर्ग या बुजुर्ग बिजनेसमैन इसके प्रति काफी क्रेज रखते हैं। हमारे एक रिश्तेदार तो अपने पुराने फाउण्टेन पेन की निब के लिए पूरे शहर की दुकानें छान मारते हैं। आज मार्केट में चाइनीज फाउण्टेन पेन से लेकर महगे सिलवर और गोल्ड प्लेटेड फाउण्टेन पेन तक उपलब्ध हैं पर न तो उनकी डिमाण्ड रही और न ही वो क्रेज रहा। याद आती है स्कूल के दिनों में सुनी वो बात कि जब जज कोई कठोर फैसला लिखते तो फाउण्टेन पेन की निब तोड़ देते थे...पर अब तो सब किस्सों में ही रह गया।

24 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बिलकुल सही कह रही हैं आप.मैंने भी फाउंटेन पेन शायद क्लास 8th तक इस्तेमाल किया है.अब तो किसी की जेब में दीखता तक नहीं.

सादर

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

puraani cheejen dheere dheere lupt ho rahi hain

shikha varshney ने कहा…

अरे बा तो फाउंटेन पेन क्या कोई भी पेन पकड़ने को उँगलियाँ तरस जाती हैं. बस कीबोर्ड पर ही चला करती हैं.

Sunil Kumar ने कहा…

अब तो पेन ड्राइव का जमाना आ गया है | आज होल्डर निब स्याही की दवात और स्याही सोखता गुम हो गया है| अच्छी याद दिलाई , धन्यवाद

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत पुरानी यादें ताज़ा कर दीं. अब तो यह सिर्फ एक इतिहास बन कर रह गया है..

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

..अब तो सिर्फ यादें ही रह गयी हैं।

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

फाउण्टेन पेन..तो अतीत की वस्तु हो चली है,नयी पीढी को तो पता ही नहीं है.
अच्छी जानकारी,आभार.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कुछ दिन पहले ही एक फाउन्टेन पेन खरीद कर लाये हैं।

मनोज कुमार ने कहा…

अब तो सब इतिहास की बातें ही होकर रह जाएंगी।

राज भाटिय़ा ने कहा…

मेरे पास दो फ़ाऊंटेन पेन हे, मेरे कोट की जेब मे, कभी चलाये नही, लेकिन स्याही भर के हमेशा तेयार रहते हे, बहुत सुंदर याद दिलाई आप ने, फ़िर इस की ट्यूब भी होती थी, बाद मे पिचकारी वाला पेन भी आया....धन्यवाद
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें.

Saleem Khan ने कहा…

अरे ! वहीँ तो रखा था, क्या मिल नहीं रहा क्या ??

Saleem Khan ने कहा…

किशोरावस्था के दिन, पढ़ाई के दिन आपने याद दिला दिए...!!!

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत मुश्किल से दिखता है मगर मेरे पास है. :)

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

वाकई अतीत की चीज हो गई फाउण्टेन पेन ...अच्छी याद दिला दी.

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

वाकई अतीत की चीज हो गई फाउण्टेन पेन ...अच्छी याद दिला दी.

raghav ने कहा…

याद आती है स्कूल के दिनों में सुनी वो बात कि जब जज कोई कठोर फैसला लिखते तो फाउण्टेन पेन की निब तोड़ देते थे...पर अब तो सब किस्सों में ही रह गया।.....की-बोर्ड की भाग दौड़ में पुरानी बातें सुकूनदायी लगती हैं. लाजवाब पोस्ट..साधुवाद स्वीकारें.

Shahroz ने कहा…

मेरे पास तो अभी भी एक फाउंटेन पेन है.

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

सचमुच, बदलाव के जाल में खो सा गया है फाउण्‍टेन पेन।

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ब्‍लॉगवाणी: ब्‍लॉग समीक्षा का एक विनम्र प्रयास।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

founten pen se likhawat bhi sudharti thi.

OM KASHYAP ने कहा…

aapne sahi kaha pen ke liye
yaaden sada ke liye

कविता रावत ने कहा…

sach ek yaad bankar jehan mein kaid ho chali hai fountain pen...
sundar prastuti.... school ke din bahut yaad aate hain...
aabhar

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

मुझे भी तो देखना है...

Shyama ने कहा…

जीनियस पेन का प्रयोग करने वाला इसके नाम के अनुरूप खुद को क्लास में सबसे जीनियस समझता था।.....तब तो हम भी जीनियस हैं.

Shyama ने कहा…

आकांक्षा जी, आप वाकई सशक्त और बेजोड़ लिखती हैं.