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मंगलवार, 4 मई 2010

60 साल में मात्र 4 महिला जज ??

...चार साल के लम्बे इंतजार के बाद आखिरकार सुप्रीम कोर्ट को एक अदद महिला न्यायधीश मिल ही गई. सुनकर बड़ा ताज्जुब लगता है कि इस देश कि आधी आबादी महिलाओं की है, पर देश की सबसे बड़ी न्यायपालिका में उनका प्रतिनिधित्व ही नहीं है. एक तरफ हम महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता की बात करते हैं, वहीँ उन्हें निर्णय प्रक्रिया में भागीदार ही नहीं बनाना चाहते. ऐसे में यदि लोकसभा-विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण के प्रयास बाद न्यायपालिका में भी महिलाओं के लिए आरक्षण की बात उठे तो हर्ज़ क्या है. ऐसा तब सोचने की जरुरत पड़ती है, जब आजादी के 6 दशक बीत जाने के बाद भी अभी तक सुप्रीम कोर्ट में मात्र 04 ही महिला जज पहुँची हैं- न्यायधीश फातिमा बीबी, न्यायधीश सुजाता मनोहर, न्यायधीश रुमा पाल और हाल ही में नियुक्त न्यायधीश ज्ञान सुधा मिश्र। किसी महिला को मुख्य न्यायधीश बनने का सौभाग्य तो अब तक नहीं मिला है।

आज देश की राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, मुख्यमंत्री सभी पदों पर महिलाएं पहुँच चुकी हैं, फिर आजादी के 6 दशक बीत जाने के बाद भी कोई महिला सुप्रीम कोर्ट की मुख्य न्यायधीश पद पर क्यों नहीं पहुँची। अव्वल तो मात्र 04 महिलाएं ही यहाँ जज बनीं, यानी औसतन 15 साल में एक महिला। सुप्रीम कोर्ट में महिला जज के रूप में न्यायधीश ज्ञान सुधा मिश्र की नियुक्ति न्यायधीश रुमा पाल के सेवानिवृत्ति होने के चार साल बाद हुई है और इसके लिए भी राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल जी को सलाह देनी पड़ी कि सुप्रीम कोर्ट में किसी महिला को जज क्यों नहीं बनाया जा रहा है। महिला सशक्तिकरण और नारी विमर्श के नारों और चिंतन के बीच यह बड़ा विचारणीय प्रश्न बनकर खड़ा हो गया है !!

24 टिप्‍पणियां:

Shahroz ने कहा…

साथ साल में सुप्रीम कोर्ट में मात्र 04 महिलाएं ही जज बनीं, यानी औसतन 15 साल में एक महिला....वाकई यह तो सोचने वाली बात है !!

Amit Kumar Yadav ने कहा…

यह तो वाकई सोचने वाली बात है..गंभीर सवाल !!

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

आकांक्षा जी, बहुत गहरी सोच. सर्वोच्च न्यायपालिका में महिलाओं की स्थिति को लेकर आपकी बात तो सीधे दिल को छू गयी.

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

आकांक्षा जी, बहुत गहरी सोच. सर्वोच्च न्यायपालिका में महिलाओं की स्थिति को लेकर आपकी बात तो सीधे दिल को छू गयी.

Shyama ने कहा…

यही तो विडम्बना है...

Unknown ने कहा…

आकांक्षा जी ! गंभीर मुद्दे की ओर आपने ध्यान आकर्षित किया..साधुवाद.

KK Yadav ने कहा…

यह अजीब दुर्भाग्य है. अगर यही स्थिति रही तो न्यायपालिका में महिला-आरक्षण को कोई नहीं टाल पायेगा.

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

...तभी तो भंवरी देवी जैसे काण्डों में बड़े अजीब से निर्णय आते हैं. महिलाओं से जुड़े मुद्दों को प्राथमिकता देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में महिला न्यायधीश अनिवार्य हैं.

Bhanwar Singh ने कहा…

सुनकर बड़ा ताज्जुब लगता है कि इस देश कि आधी आबादी महिलाओं की है, पर देश की सबसे बड़ी न्यायपालिका में उनका प्रतिनिधित्व ही नहीं है. एक तरफ हम महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता की बात करते हैं, वहीँ उन्हें निर्णय प्रक्रिया में भागीदार ही नहीं बनाना चाहते....Bilkul sahi kaha apne.

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

आरक्षण ही नहीं, आरक्षण में भी आरक्षण की जरुरत है. महिला सशक्तिकरण के साथ-साथ सामाजिक न्याय भी जरुरी है.

मन-मयूर ने कहा…

आकांक्षा जी, अपने तो बैठे-बैठे सतर्क नेताओं को मुद्दा दे दिया...

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

mahtvpoorn vishay aapne chuna hai.dhanyvad.have a nice day

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

वाह, फिर तो मैं भी जज बनूँगी.

S R Bharti ने कहा…

हर जगह नारी-सशक्तिकरण पर न्यायपालिका में नहीं...यह तो गलत बात हुई.

S R Bharti ने कहा…

हर जगह नारी-सशक्तिकरण पर न्यायपालिका में नहीं...यह तो गलत बात हुई.

raghav ने कहा…

न्यायपालिका से जुदा मुद्दा संवेदनशील भी है और नाजुक भी. इस तरफ सोचने की जरुरत है.

शरद कुमार ने कहा…

सही लिखा आपने मैडम जी..लोकसभा के बाद अब न्यायपालिका का ही नंबर है.

Akanksha Yadav ने कहा…

आप सभी की टिप्पणियों एवं प्रोत्साहन के लिए आभार !!

संजय भास्‍कर ने कहा…

यह अजीब दुर्भाग्य है

संजय भास्‍कर ने कहा…

आपकी बात तो सीधे दिल को छू गयी.

Udan Tashtari ने कहा…

नारा बुलंद करो!!

M VERMA ने कहा…

आश्वासन तो मिल ही रहे हैं
यही तो बिडम्बना है ----

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर ने कहा…

narayan narayan

editor : guftgu ने कहा…

अहम् मुद्दा...आभार.