मँहगी सब्जी, मँहगा आटा
भूल गए सब दाल
मँहगाई ने कर दिया
सबका हाल बेहाल।
दूध सस्ता, पानी मँहगा
पेप्सी-कोला का धमाल
रोटी छोड़ ब्रेड खाओ
बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कमाल।
नेता-अफसर मौज उड़ाएं
चलें बगुले की चाल
गरीबी व भुखमरी बढ़े
ऐसा मँहगाई का जाल ।
संसद में होती खूब बहस
सेठ होते कमाकर लाल
नेता लोग खूब चिल्लायें
विपक्ष बनाए चुनावी ढाल।
जनता रोज पिस रही
धंस गए सबके गाल
मँहगाई का ऐसा कुचक्र
हो रहे सब हलाल !!
(इसे वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में भी पढ़ें )
26 टिप्पणियां:
आकांक्षा जी जनहित से जुड़े समस्याओं को कविता के रूप में ही सही ,उठाने के लिए धन्यवाद / जनहित में ही लिखिए यह मेरा आपसे आग्रह है क्योकि आज जबतक हमसब मिलकर एक स्वर से आवाज नहीं उठाएंगे तबतक इस देश और समाज का भला नहीं हो सकता /
यही हालात है, उम्दा रचना!!
वैशाखनन्दन पर भी पढ़ आये. :)
मँहगी सब्जी, मँहगा आटा
भूल गए सब दाल
मँहगाई ने कर दिया
सबका हाल बेहाल।
....बहुत सही लिखा आकांक्षा जी ने..हमारा भी हाल महंगाई से बेहाल है.
महंगाई से तो सभी त्रस्त हैं..बेहतरीन रचना..बधाई !!
शब्दों को सुन्दर धार दी आपने इस कविता में. आकांक्षा जी को बधाई.
सादर वन्दे !
समयातीत रचना ! बिलकुल सरकार के मुह पर तमाचे जैसा |
लेकिन एक गलती रह गयी, दूध सस्ता लिख गया है शायद !
क्षमा करें ऐसा मुझे लगा |
रत्नेश त्रिपाठी
सच को आइना दिखाती कविता..शुभकामनायें.
your post published on NanhaPan on cellulal jail was breath taking
नेता-अफसर मौज उड़ाएं
चलें बगुले की चाल
गरीबी व भुखमरी बढ़े
ऐसा मँहगाई का जाल ।
..करार व्यंग्य...सार्थक रचना.
दूध सस्ता, पानी मँहगा
पेप्सी-कोला का धमाल
रोटी छोड़ ब्रेड खाओ
बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कमाल।... कभी रूस में एक रानी ने भी यही कहा था की रोटियां नहीं हैं तो क्या हुआ, ब्रेड खाओ. आपकी कविता मर्म पर चोट करती है..बधाई.
यहाँ अंडमान में तो कई बार पैसे होने पर भी चीजें जल्दी नहीं मिलती और मेन लैंड से चीजें दुगुने-तिगुने दाम पर मिलती हैं..यह भी एक महंगी बेबसी है.
कविता तो शानदार है. तीखी चोट, करार व्यंग्य..बधाई .
बढियां कविता ..
आप सभी ने सराहा , अच्छा लगा. आपकी टिप्पणियों व स्नेह के लिए आभार !!
@ aarya ji,
दूध सस्ता, पानी मँहगा..मतलब कि पानी दूध से महंगा बिकता है.
waqy me sahi he
बेहतरीन !
यह महगाई सिर्फ़ भारत मै ही क्यो है?? जहां सब कुछ ऊगता है. पानी की किल्लत, बिजली की किल्लत, हर चीज की किल्लत... लेकिन क्यो??? देश मै लोग बहुत मेहनत करते है फ़िर भी.... कभी सब मिल कर सोचे, ओर जिस दिन बात समझ मै आ गई उस दिन एक क्रांति होगी, क्योकि उस दिन लोग जागरुक होंगे अपने हको के लिये, उस दिन यह महंगाई ओर इस के जन्म दाता गंदी नालियो मै मरे गिरे होंगे
aatmvan rastra ke rajnitigyo ki aatma ko lakwa lag chuka hai.islie mehngai bad rhi hai.
रोटी छोड़ ब्रेड खाओ
बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कमाल।
यही मंसा है शायद
महंगाई पर लिख डाला है
खूब किया कमाल
महंगाई पर लिख डाला है
खूब किया कमाल
महंगाई पर लिख डाला है
खूब किया कमाल
मंहगाई पर आपकी कविता का कमाल...बहुत अच्छा व्यंग
@ राज भाटिया जी,
आपकी बात में तथ्य भी है और दम भी है.
मँहगी सब्जी, मँहगा आटा
भूल गए सब दाल
मँहगाई ने कर दिया
सबका हाल बेहाल।
....बहुत सही लिखा आकांक्षा जी ने..हमारा भी हाल महंगाई से बेहाल है.
मेरी चाकलेट व गिफ्ट भी तो महंगे..
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