प्रकृति के कई रंग हैं। कई बार प्रकृति कुछ ऐसे अजूबे भी उत्पन्न करती है कि उन पर विश्वास करना मुश्किल होता है, ठीक वैसे ही जैसे परियों की कहानियाँ। इसी प्रकार बचपन में हम अक्सर सुना करते थे कि गूलर का फूल होता है, पर वह रात्रि को खिलता है और उसे कोई देख नहीं सकता। इसी तर्ज पर ’गूलर का फूल’ होना जैसी एक कहावत भी है। जिसका इस्तेमाल तब किया जाता है जब हमारा कोई परिचित एक लंबे समय बाद आँखों से ओझल रहने पर अचानक प्रकट होता है। ऐसी न जाने कितनी किंवदंतियाँ और बातें हैं, जिनके बारे में शत-प्रतिशत दावा करना मुश्किल होता है, पर यही तो हमारी उत्सुकता व रोचकता को बढ़ाते हैं। अक्सर अपने आस-पास हम पेड़-पौधों को तमाम देवी-देवताओं या जीवों की आकृति रूप में देखते हैं। हममें से कितनों ने कस्तूरी मृग देखे हैं, पर कस्तूरी खुशबू के बारे में अक्सर सुनते रहते हैं।
प्रकृति का एक ऐसा ही अजूबा है- ’नारीलता फूल’। नारी की सुदरता का बखान करने के लिए कई बार उसकी तुलना फूलों से की जाती है, पर यहाँ तो बकायदा नारी-आकृति फूल के रूप में पल्लवित-पुष्पित होती है। कहा जाता है कि यह एक दुर्लभ फूल है जो 20 साल के अंतराल पर खिलता है। यह भारत के हिमालय और श्रीलंका तथा थाईलैंड में पाए जाने वाले एक पेड़ में खिलता है। हिमालय में इसे इसके आकार के कारण नारीलता फूल कहा जाता है। जब यह फूल खिलता है तो पूरे पेड़ पर चारों तरफ नारी-आकृति वाले यह फूल लटके रहते हैं। ऐसा प्रतीत होता है, मानो किसी ने उन पेड़ों पर ढेर सारी गुडि़या लटका दी हों। वाकई नारी-आकृति वाला यह फूल दुर्लभ एवं प्रकृति की अनमोल कलाकारी है।
यही कारण है कि नारीलता फूल सदैव चर्चा में रहा है। यू-ट्यूब, फेसबुक और गूगल तक पर लोग इसके बारे में चर्चा कर रहे हैं और इसे खोज रहे हैं। कुछेक लोगों का तो ये भी मानना है कि यह किसी इंसान की हरकत है जिसने तमाम गुडि़यों को वृक्ष पर लटका दिया है, तो कुछेक इसे डिजिटल टेक्नालाजी से जोड़-तोड़ की कला बताते हैं। सच क्या है, यह किसी को नहीं पता। आखिर 20 साल का अंतराल कम नहीं होता है। पर जो भी हो प्रकृति की अद्भुत कलाकारी के हमने कई रंग देखे हैं और यह भी उसी में से एक हो तो आश्चर्य नहीं।
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