
खैर इसी बहाने पहली बार आलू की महिमा भी पता चली. कभी सोचा भी न था की आलू के बिना जीवन कैसा होगा क्योंकि आलू को तो सर्वत्र व्याप्त माना जाता है. घर में कुछ भी न हो तो आलू जरुर होता है. अधिकतर सब्जियाँ आलू के बिना सूनी हैं और फिर आलू के समोसे, आलू के भरते (चोखा) और आलू के पराठों के बिना तो स्वाद ही नहीं आता. पिछले 15 दिनों से अंडमान के लोग आलू के लिए तरस गए थे. रोज सुनाई देता कि मेन लैंड से जलयान द्वारा आलू चल चुका है, बस यहाँ पहुँचने भर की देरी है. सब्जियाँ और फल वैसे भी अंडमान में महँगे हैं. यहाँ के समुद्री खरे पानी द्वारा उनकी पैदाइश संभव भी नहीं. कई बार आश्चर्य होता है कि हर तरफ पानी ही पानी, पर वह किस काम का. न आप उसे पी सकते हैं, न उससे सिंचाई कर सकते हैं, न बिजली बना सकते हैं...!
फ़िलहाल, आज सुबह आलू महाराज के दर्शन हुए तो पहले तो उन्हें जी भरकर निहारा कि महाराज कहाँ चले गए थे. फिर सुबह नाश्ते में आलू के पराठे...शायद ही इतना स्वादिष्ट व चटपटा कभी लगा हो. वाकई जब चीजें हमें आसानी से मिलती हैं तो हमें उनकी महत्ता समझ में नहीं आती. जब हम लोग पढने जाते थे और किसी दिन सुबह कोई सब्जी घर में नहीं होती तो आलू की भुजिया या आलू के पराठों से उम्दा कुछ भी नहीं हो सकता था. ..पर यहाँ अंडमान में 20 रूपये किलो आलू भी अब सस्ता लगने लगा है.सब समय व जगह का फेर है !!
31 टिप्पणियां:
यहाँ अंडमान में 20 रूपये किलो आलू भी अब सस्ता लगने लगा है.सब समय व जगह का फेर है !!
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
अंडमान से सीधा जीवंत प्रसारण..वहां की दुनिया भी अजीब है.
अजी ये तो बहुत कष्टदायी रहा होगा..खैर इसी बहाने नई-नई सब्जियां...शानदार प्रस्तुति.
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इस जानकारी के लिए धन्यावाद
वरना हमें पता ही नही लग पाता
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
खैर इसी बहाने पहली बार आलू की महिमा भी पता चली.
ganganagar me aa jao, narayan narayan
जय हो आलू की , बढ़िया लगा आपको पढ़ना ।
वाह जी बहुत सुंदर बात कही आलू के बारे मै,वेसे हमारे यहां भारतीया सब्जियां नही मिलती ओर हम ने स्थानिया सब्जियो को ही भारतिया रुप मे बनाना शुरु कर दिया
फिर सुबह नाश्ते में आलू के पराठे...शायद ही इतना स्वादिष्ट व चटपटा कभी लगा हो.
सुगम में स्वाद कहाँ
तो ये हालात है
अपना महत्त्व जताने के लिए ही आलू बाज़ार से गायब हुआ होगा वर्ना खुश फ़हमी बनी रहती कि आलू तो universal है
एक अच्छी जानकारी के साथ आलू के पराठे की याद दिला दी ...शुक्रिया
http://athaah.blogspot.com/
मन को छूती पोस्ट.......
जब कोई चीज हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन जाती है और अचानक ही गायब हो जाये तभी हमें उसकी महत्ता पता चलती है। जय आलू !!!!
नमस्कार, आलु की विशिश्टता बताती आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी
एक ही भारत में भिन्न-भिन्न स्थितियां..यही तो हमारी विविधता है.
एक ही भारत में भिन्न-भिन्न स्थितियां..यही तो हमारी विविधता है.
सही कहा आपने..खैर वो दिन बीत गए.
चलिए फ़िलहाल पराठे तो मिल गए...इतने दिन बाद बड़ा स्वादिष्ट लगा होगा.
आलू के पराठे--यमी-यमी .
is lekh se pata chalta hai ki hamare niti niyanta kitne laparvah hain
चलिए देर से ही सही खाने को तो मिले. यही जीवन का आनंद है..कभी खट्टा तो कभी मीठा.
एक बार हमारे साथ भी ऐसा हुआ था...
कभी उन गरीबों की भी सोचें जिन्हें कभी भी दो जून की सब्जी मयस्सर नहीं होती....
सब सरकार की लापरवाही है. कहीं आलू सड़ रहें हैं, कहीं आलू का अकाल.
आलू की महिमा को कम न अंकिये..इनके बिना तो सब सूना है.
आकांक्षा जी, भाषाओँ और बोलियों के सिमटते संसार पर आपका प्रभावी लेख नवनीत (मई २०१० अंक) में पढ़ा..सारगर्भित..बधाई.
यही तो हैं अनुभवों की चांदी...संस्मरण लिखने के समय काम आयेंगें.
ये भी खूब रही...रोचक व दिलचस्प पोस्ट.
आप सभी की टिप्पणियों एवं स्नेह के लिए आभार.
@ Shahroz ji,
धन्यवाद इस जानकारी के लिए.
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