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गुरुवार, 6 मई 2010

आलू के पराठे को तरस गए...

पिछले 15 दिनों तक अंडमान में आलू की किल्लत बनी रही. रोज न्यूज चैनलों पर हम देखते रहे कि देश के विभिन्न भागों में आलू सड़ रहे हैं, पर यहाँ अंडमान में सड़ना छोडिये, देखने को तरस गए. जेब में पैसे होकर भी क्या करेंगे, जब चीज मयस्सर ही न हो. आलू के अभाव में सब्जियों को लेकर रोज नए प्रयोग किये. दो-चार दिन तक तो आलू के बिना सब्जियाँ चल जाती हैं, पर उसके बाद कब तक पनीर, राजमा, छोले, सोयाबीन या भिन्डी, मटर, लौकी इत्यादि खाते रहेंगें. आलू की बजाय मटर के बने समोसे कई दिन तक स्वाद नहीं बना पते. आखिरकार आलू न चाहते हुए भी हमारे स्वाद का अभिन्न अंग बन चुका है. इसे तभी तो सब्जियों का राजा भी कहा जाता है.

खैर इसी बहाने पहली बार आलू की महिमा भी पता चली. कभी सोचा भी न था की आलू के बिना जीवन कैसा होगा क्योंकि आलू को तो सर्वत्र व्याप्त माना जाता है. घर में कुछ भी न हो तो आलू जरुर होता है. अधिकतर सब्जियाँ आलू के बिना सूनी हैं और फिर आलू के समोसे, आलू के भरते (चोखा) और आलू के पराठों के बिना तो स्वाद ही नहीं आता. पिछले 15 दिनों से अंडमान के लोग आलू के लिए तरस गए थे. रोज सुनाई देता कि मेन लैंड से जलयान द्वारा आलू चल चुका है, बस यहाँ पहुँचने भर की देरी है. सब्जियाँ और फल वैसे भी अंडमान में महँगे हैं. यहाँ के समुद्री खरे पानी द्वारा उनकी पैदाइश संभव भी नहीं. कई बार आश्चर्य होता है कि हर तरफ पानी ही पानी, पर वह किस काम का. न आप उसे पी सकते हैं, न उससे सिंचाई कर सकते हैं, न बिजली बना सकते हैं...!

फ़िलहाल, आज सुबह आलू महाराज के दर्शन हुए तो पहले तो उन्हें जी भरकर निहारा कि महाराज कहाँ चले गए थे. फिर सुबह नाश्ते में आलू के पराठे...शायद ही इतना स्वादिष्ट व चटपटा कभी लगा हो. वाकई जब चीजें हमें आसानी से मिलती हैं तो हमें उनकी महत्ता समझ में नहीं आती. जब हम लोग पढने जाते थे और किसी दिन सुबह कोई सब्जी घर में नहीं होती तो आलू की भुजिया या आलू के पराठों से उम्दा कुछ भी नहीं हो सकता था. ..पर यहाँ अंडमान में 20 रूपये किलो आलू भी अब सस्ता लगने लगा है.सब समय व जगह का फेर है !!

31 टिप्‍पणियां:

मनोज कुमार ने कहा…

यहाँ अंडमान में 20 रूपये किलो आलू भी अब सस्ता लगने लगा है.सब समय व जगह का फेर है !!
बहुत अच्छी प्रस्तुति।

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

अंडमान से सीधा जीवंत प्रसारण..वहां की दुनिया भी अजीब है.

बेनामी ने कहा…

अजी ये तो बहुत कष्टदायी रहा होगा..खैर इसी बहाने नई-नई सब्जियां...शानदार प्रस्तुति.

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SANJEEV RANA ने कहा…

इस जानकारी के लिए धन्यावाद
वरना हमें पता ही नही लग पाता

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

संजय भास्‍कर ने कहा…

खैर इसी बहाने पहली बार आलू की महिमा भी पता चली.

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर ने कहा…

ganganagar me aa jao, narayan narayan

Mithilesh dubey ने कहा…

जय हो आलू की , बढ़िया लगा आपको पढ़ना ।

राज भाटिय़ा ने कहा…

वाह जी बहुत सुंदर बात कही आलू के बारे मै,वेसे हमारे यहां भारतीया सब्जियां नही मिलती ओर हम ने स्थानिया सब्जियो को ही भारतिया रुप मे बनाना शुरु कर दिया

M VERMA ने कहा…

फिर सुबह नाश्ते में आलू के पराठे...शायद ही इतना स्वादिष्ट व चटपटा कभी लगा हो.
सुगम में स्वाद कहाँ
तो ये हालात है

aarkay ने कहा…

अपना महत्त्व जताने के लिए ही आलू बाज़ार से गायब हुआ होगा वर्ना खुश फ़हमी बनी रहती कि आलू तो universal है

Ra ने कहा…

एक अच्छी जानकारी के साथ आलू के पराठे की याद दिला दी ...शुक्रिया

http://athaah.blogspot.com/

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

मन को छूती पोस्ट.......

विवेक रस्तोगी ने कहा…

जब कोई चीज हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन जाती है और अचानक ही गायब हो जाये तभी हमें उसकी महत्ता पता चलती है। जय आलू !!!!

ज़मीर ने कहा…

नमस्कार, आलु की विशिश्टता बताती आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी

Amit Kumar Yadav ने कहा…

एक ही भारत में भिन्न-भिन्न स्थितियां..यही तो हमारी विविधता है.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

एक ही भारत में भिन्न-भिन्न स्थितियां..यही तो हमारी विविधता है.

KK Yadav ने कहा…

सही कहा आपने..खैर वो दिन बीत गए.

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

चलिए फ़िलहाल पराठे तो मिल गए...इतने दिन बाद बड़ा स्वादिष्ट लगा होगा.

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

आलू के पराठे--यमी-यमी .

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

is lekh se pata chalta hai ki hamare niti niyanta kitne laparvah hain

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

चलिए देर से ही सही खाने को तो मिले. यही जीवन का आनंद है..कभी खट्टा तो कभी मीठा.

Shyama ने कहा…

एक बार हमारे साथ भी ऐसा हुआ था...

S R Bharti ने कहा…

कभी उन गरीबों की भी सोचें जिन्हें कभी भी दो जून की सब्जी मयस्सर नहीं होती....

Bhanwar Singh ने कहा…

सब सरकार की लापरवाही है. कहीं आलू सड़ रहें हैं, कहीं आलू का अकाल.

Shahroz ने कहा…

आलू की महिमा को कम न अंकिये..इनके बिना तो सब सूना है.

Shahroz ने कहा…

आकांक्षा जी, भाषाओँ और बोलियों के सिमटते संसार पर आपका प्रभावी लेख नवनीत (मई २०१० अंक) में पढ़ा..सारगर्भित..बधाई.

raghav ने कहा…

यही तो हैं अनुभवों की चांदी...संस्मरण लिखने के समय काम आयेंगें.

मन-मयूर ने कहा…

ये भी खूब रही...रोचक व दिलचस्प पोस्ट.

Akanksha Yadav ने कहा…

आप सभी की टिप्पणियों एवं स्नेह के लिए आभार.

Akanksha Yadav ने कहा…

@ Shahroz ji,

धन्यवाद इस जानकारी के लिए.