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सोमवार, 31 मई 2010

सभ्यताओं को लीलने को तैयार 'तम्बाकू' की विषबेल


आज विश्व तम्बाकू निषेध दिवस है. मई माह की भी अपनी महिमा है. मजदूर दिवस से आरंभ होकर यह तम्बाकू निषेध दिवस पर ख़त्म हो जाता है. दुनिया के 170 राष्ट्रों ने व्यापक तम्बाकू नियंत्रण संधि पर हस्ताक्षर तो किये हैं पर वास्तव में इस सम्बन्ध में कोई ठोस पहल नहीं की जाती है. इसके पीछे राजस्व नुकसान से लेकर कार्पोरेट जगत के निहित तत्व तक शामिल हैं, जिनकी सरकारों में जबरदस्त घुसपैठ होती है. ऐसे में तम्बाकू के धुँए का यह जहर धीरे-धीरे सुरसा के मुँह की तरह पूरी दुनिया को निगलने पर आमदा है. 450 ग्राम तम्बाकू में निकोटीन की मात्रा लगभग 22.8 ग्राम होती है। इसकी 6 ग्राम मात्रा से एक कुत्ता 3 मिनट में मर जाता है। तम्बाकू के प्रयोग से अनेक दंत रोग, मंदाग्नि रोग हो जाता है। आंखों की ज्योति कम हो सकती है तो दुष्प्रभाव रूप में व्यक्ति बहरा व अन्धा तक हो जाता है। तम्बाकू के निकोटीन से ब्लड प्रेशर बढ़ता है, रक्त संचार मंद पड़ जाता है।फेफड़ों की टीबी तो इसका सीधा प्रभाव देखा जा सकता है. यही नहीं तम्बाकू के सेवन से व्यक्ति नपुंसक भी हो सकता है। कहना गलत न होगा कि तम्बाकू का नियमित सेवन धीरे-धीरे व्यक्ति को मृत्यु के करीब ला देता है और वह असमय ही काल-कवलित हो जाता है.

अकेले भारत में हर साल लगभद आठ लाख मौतें तम्बाकू से होने वाली बीमारियों के कारण होती हैं.आज बच्चे-बूढ़े-जवान से लेकर पुरुष-नारी तक सभी वर्गों में तम्बाकू की लत देखी जा सकती है. कभी फैशन में तो,कभी नशे के चस्के में और कई बार थकान मिटाने या गम भुलाने की आड़ में भी इसे लिया जा रहा है. घर में बड़ों द्वारा लिए जा रहा तम्बाकू कब छोटों के पास पहुँच जाता है, पता ही नहीं चलता. दुर्भाग्यवश भारत में धर्म की आड में भी तम्बाकू का स्वाद लेने वालों की कमी नहीं है. गौरतलब है कि आयुर्वेद के चरक तथा सुश्रुत जैसे हजारों वर्ष पूर्व रचे गए ग्रन्थों में धूम्रपान का विधान है। वैसे, वहाँ पर उसका वर्णन औषधि के रूप में हुआ है, जैसे कहा गया है कि आम के सूखे पत्ते को चिलम जैसी किसी उपकरण में रखकर धुआं खींचने से गले के रोगों में आराम होता है। दमा तथा श्वास संबंधी रोगों में वासा (अडूसा) के सूखे पत्तों को चिलम में रखकर पीना एक प्रभावशाली उपाय माना गया है। आज भी ऐसे लोग मिल जायेंगे जो तम्बाकू को दवा बताते हैं. पवित्र तीर्थस्थलों पर धूनी पर बैठकर सुलफा, गांजा अथवा तम्बाकू के दम लगाने वालों तथाकथित बाबाओं की तो पूरी फ़ौज ही भरी पड़ी है. सरकारी दफ्तरों में तम्बाकू या धूम्रपान का सेवन करते पकड़े गए तमाम लोगों ने इसे अपने पक्ष में उपयोग किया है. पर ऐसे लोग उस पक्ष को भूल जाते हैं, जहाँ स्कन्दपुराण में कहा गया है कि-"स्वधर्म का आचरण करके जो पुण्य प्राप्त किया जाता है, वह धूम्रपान से नष्ट हो जाता है। इस कारण समस्त ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य आदि को इसका सेवन कदापि नहीं करना चाहिए।''

इधर हाल के वर्षों में जिस तरह से इसने तेजी से महिलाओं को चंगुल में लेना आरंभ किया है, वह पूरी दुनिया के लिए चिंताजनक बन चुका है. अधिकतर महिलाओं का यह नशा उनकी अगली पीढ़ी में भी जा रहा है क्योंकि मात्रीत्व की स्थिति में इसका बुरा असर बच्चों पर पड़ना तय है. अब तो महिलाओं के लिए बाकायदा अलग से तम्बाकू उत्पाद भी बनने लगे हैं. स्कूल जाते लड़के-लड़कियां कम उम्र में ही इनका लुत्फ़ उठाने लगे हैं. उस पर से विज्ञापनों की चकाचौंध भी उन्हें इसका स्वाद लेने की तरफ अग्रसर करती है. फिल्मों-धारावाहिकों में जिस धड़ल्ले से नायक-नायिकाएं तम्बाकू वाले सिगरेट या सिगार को स्टाइल में पीते नजर आते हैं, वह नवयुवकों-नवयुवतियों पर गहरा असर डालता है. ऐसे में यह पता होते हुए भी कि यह स्वस्थ्य के अनुकूल नहीं है, यह स्टेट्स सिम्बल या फैशन का प्रतीक बन जाता है. प्रथम विश्व युद्ध के बाद घाटे की भरपाई और बदलते मूल्यों के चक्कर में पहली बार व्यावसायिक कंपनियों ने तम्बाकू उत्पादों की बिक्री के लिए महिलाओं का इस्तेमाल करना आरंभ किया. लारीवार्ड कंपनी ने पहल करते हुए पहली बार तम्बाकू उत्पादों के विज्ञापन हेतु सर्वप्रथम 1919 में महिलाओं के चित्रों का उपयोग किया। इसके अगले साल ही सिगरेट को नारी- स्वतंत्रता के प्रतीक रूप में प्रस्तुत किया गया। 1927 के दौर में तो बाकायदा मार्लबोरो ब्रांड में सिगरेट को फैशन व दुबलेपन से जोड़ कर पेश किया गया. इसी के साथ ही कई नामी-गिरामी कंपनियों ने तमाम अभिनेत्रियों को तम्बाकू उत्पादों के कैम्पेन से जोड़ना आरंभ किया। बाद के वर्षों में जैसे -जैसे नारी-स्वातंत्र्य के नारे बुलंद होते गए, स्लिम होने को फैशन-स्टेटमेंट माना जाने लगा, इन कंपनियों ने भी इसे भुनाना आरंभ कर दिया. फिलिप मौरिस कंपनी ने 60 के दशक में बाकायदा वर्जिनिया स्लिम्स नाम से मार्केटिंग अभियान आरंभ किया,जिसकी पंच लाइन थी -'यू हैव कम ए लांग वे बेबी.' इसके बाद तो लगभग हर कंपनी ही तम्बाकू उत्पादों के प्रचार के लिए नारी माडलों व फ़िल्मी नायिकाओं का इस्तेमाल कर रही है.


ऐसे में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा इस वर्ष तम्बाकू निषेध दिवस पर महिलाओं पर फोकस किया जाना महत्वपूर्ण व प्रासंगिक भी है. गौरतलब है कि भारत कि कुल जितनी आबादी है, लगभग उतने ही लोग दुनिया में धुम्रपान करने वाले भी हैं, अर्थात 1 अरब से ज्यादा. इस 1 अरब में धूम्रपान करने वाली करीब 20 फीसदी महिलाएं भी शामिल हैं. आज महिलाओं में धूम्रपान का यह शौक भारत में भी बखूबी देखने को मिलता है. यह अक्सर या तो हाई सोसाईटी में या समाज के निचले तबके में बखूबी देखने को मिलता है. आंकड़े गवाह हैं कि भारत में करीब 1.4 फीसदी महिलायें धूम्रपान और करीब 8.4 फीसदी महिलायें खाने योग्य तम्बाकू का सेवन करती है। ऐसे में तम्बाकू सेवन से उनमें तमाम रोग व विकार उत्पन्न होते हैं. इनमें श्वांस सम्बन्धी बीमारी, फेफड़े का कैंसर, दिल का दौरा, निमोनिया, माहवारी सम्बंधित समस्याएं एवं प्रजनन विकार जैसी बीमारियाँ शामिल हैं. यही नहीं तम्बाकू का नियमित सेवन करने वाली महिलाओं में अक्सर पूर्व-प्रसव भी देखा गया हाई तथा पैदा होने वाले बच्चे औसत वजन से लगभग 400-500 ग्राम कम के पैदा होते हैं. इसके साथ ही तम्बाकू सेवन करने वाली महिलाओं में गर्भपात की दर भी सामान्य महिलाओं की तुलना में 95 फीसदी ज्यादा होती है।

वाकई आज जरुरत है कि इस ओर गंभीर पहल की जाय. इन्हीं सबके चलते विश्व स्वास्थ्य संगठन अब तम्बाकू-उत्पादों का भ्रामक बाजारीकरण, जिसमें परोक्ष-अपरोक्ष रूप में तम्बाकू कंपनियों द्वारा प्रायोजित किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रम पर प्रतिबन्ध लगाना भी शामिल है, के बारे में भी सोच रहा है. जानकर आश्चर्य होगा कि तम्बाकू कंपनियाँ हर साल विज्ञापन पर करीब दस अरब रूपये खर्च करतीं हैं. पर बेहतर होगा कि सरकारों और संगठनों की बजाय इस सम्बन्ध में अपने घर और उससे पहले खुद से शुरुआत की जाय ताकि तम्बाकू की यह विषबेल समय से पहले ही सभ्यताओं को न लील ले. क्योंकि Active रूप में जहाँ यह खुद के लिए घातक है, वही Passive रूप में हमारे परिवेश, परिवार, समाज और अंतत: पूरी सभ्यता को लीलने के लिए तैयार बैठी है !!

28 टिप्‍पणियां:

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

बहुत अच्छी और ज्ञानवर्धक पोस्ट..... मैं तो कुछ भी नहीं लेता...... तम्बाकू में....

माधव( Madhav) ने कहा…

really eye opener

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर एक गंभीर पोस्ट. आपने तो ऑंखें ही खोल दीं.

बेनामी ने कहा…

अधिकतर महिलाओं का यह नशा उनकी अगली पीढ़ी में भी जा रहा है क्योंकि मात्रीत्व की स्थिति में इसका बुरा असर बच्चों पर पड़ना तय है. अब तो महिलाओं के लिए बाकायदा अलग से तम्बाकू उत्पाद भी बनने लगे हैं. ..अच्छा चेताया आपने. इस ओर सभी को ध्यान देने की जरुरत है.

बेनामी ने कहा…

और सिगरेट का यह चित्र तो तम्बाकू की भयावहता को बखूबी दर्शाता है.

Unknown ने कहा…

आपने धूम्रपान के हर पक्ष पर बड़े करीने से प्रकाश डाला है. विस्तृत जानकारी के लिए साधुवाद.

Bhanwar Singh ने कहा…

सभ्यताओं को लीलने को तैयार तम्बाकू की विषबेल...कम शब्दों में शीर्षक ही सब कुछ कह जाता है और चित्र देखने के बाद तो इस विषबेल का नग्न सच भी दिख जाता है

Shyama ने कहा…

फिल्मों-धारावाहिकों में जिस धड़ल्ले से नायक-नायिकाएं तम्बाकू वाले सिगरेट या सिगार को स्टाइल में पीते नजर आते हैं, वह नवयुवकों-नवयुवतियों पर गहरा असर डालता है. ऐसे में यह पता होते हुए भी कि यह स्वस्थ्य के अनुकूल नहीं है, यह स्टेट्स सिम्बल या फैशन का प्रतीक बन जाता है.
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सटीक जगह आपने चोट की. यही तो विडम्बना है. नायक-नायिका नकारात्मक तत्व बन गए हैं.

Udan Tashtari ने कहा…

विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर बहुत सार्थक आलेख...ऐसे आलेखों से जागरुकता फैलाने की जरुरत है.

Shyama ने कहा…

विश्व तम्बाकू निषेध दिवस के बारे में समग्र जानकारी के लिए आकांक्षा जी का आभार.

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

आकांक्षा जी, ज्ञान भी बढ़ा...जागरूक भी हुए ..और अब दूसरों को भी जागरूक करेंगे.

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

जागरूक पोस्ट ..बधाई !!

Amit Kumar Yadav ने कहा…

युवाओं को जागरूक करने के लिए इसका प्रिंट आउट निकालकर वितरित किया जा सकता है.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

अति उत्तम. इसका लिंक युवा मन पर भी देकर आपने अच्छा किया.

editor : guftgu ने कहा…

जानकर आश्चर्य होगा कि तम्बाकू कंपनियाँ हर साल विज्ञापन पर करीब दस अरब रूपये खर्च करतीं हैं।....इसे ही कहते हैं मौत का वैध व्यापर. अब इसके आगे क्या कहा जाय.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत उपयोगी पोस्ट!

Shahroz ने कहा…

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा इस वर्ष तम्बाकू निषेध दिवस पर महिलाओं पर फोकस किया जाना महत्वपूर्ण व प्रासंगिक भी है.

KK Yadav ने कहा…

आज महिलाओं में धूम्रपान का यह शौक भारत में भी बखूबी देखने को मिलता है. यह अक्सर या तो हाई सोसाईटी में या समाज के निचले तबके में बखूबी देखने को मिलता है. आंकड़े गवाह हैं कि भारत में करीब 1.4 फीसदी महिलायें धूम्रपान और करीब 8.4 फीसदी महिलायें खाने योग्य तम्बाकू का सेवन करती है। *********यह स्थिति तो काफी खतरनाक है. ..विचारणीय पोस्ट, जो लोगों को जागरूक भी करेगी.

शरद कुमार ने कहा…

विचारोत्तेजक पोस्ट. ज्वलंत मुद्दे पर धारदार तरीके से लिखने में आपका कोई सानी नहीं, बधाई.

Akanksha Yadav ने कहा…

आप सभी को यह पोस्ट पसंद आई, आभार. आपने स्नेह यूँ ही बनाये रहें !!

डॉ टी एस दराल ने कहा…

जब तक मिडिया , फिल्मों और विज्ञापनों में धूम्रपान का प्रचार बंद नहीं होगा , तब तक धूम्रपान विरोध का प्रभाव ज्यादा नहीं पड़ेगा । लेकिन फिर भी जागरूकता पैदा करना हम सब का फ़र्ज़ है ।
समसामयिक और प्रभावशाली पोस्ट ।

S R Bharti ने कहा…

Interesting Post...Knowledgefull also !!

Akanksha Yadav ने कहा…

@ Daral ji,

Sahi kaha apne.

Ra ने कहा…

gyanvardhak aur prerak post ...parantu ham to tambakoo se dur rahte hai ....aapki jaankari sabhi tak pahunchane ki koshish karnge ,,,,dhnyvaad

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

समसामयिक और ज्ञानवर्द्धक पोस्ट...चेतावनी देती हुई...

S R Bharti ने कहा…

वाकई आज जरुरत है कि इस ओर गंभीर पहल की जाय. इन्हीं सबके चलते विश्व स्वास्थ्य संगठन अब तम्बाकू-उत्पादों का भ्रामक बाजारीकरण, जिसमें परोक्ष-अपरोक्ष रूप में तम्बाकू कंपनियों द्वारा प्रायोजित किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रम पर प्रतिबन्ध लगाना भी शामिल है, के बारे में भी सोच रहा है. जानकर आश्चर्य होगा कि तम्बाकू कंपनियाँ हर साल विज्ञापन पर करीब दस अरब रूपये खर्च करतीं हैं. पर बेहतर होगा कि सरकारों और संगठनों की बजाय इस सम्बन्ध में अपने घर और उससे पहले खुद से शुरुआत की जाय ताकि तम्बाकू की यह विषबेल समय से पहले ही सभ्यताओं को न लील ले. क्योंकि Active रूप में जहाँ यह खुद के लिए घातक है, वही Passive रूप में हमारे परिवेश, परिवार, समाज और अंतत: पूरी सभ्यता को लीलने के लिए तैयार बैठी है !!
महोदया , ठीक कहा आपने स्वागतयोग्य लेख तथा आँखों को खोलने वाला प्रेरक प्रसंग प्रस्तुत किया

raghav ने कहा…

ज्ञानवर्धक लेख है - जब तक सरकार इस पर रोक नहीं लगाती इसको रोक पाना मुस्किल है

raghav ने कहा…

ज्ञानवर्धक लेख है - जब तक सरकार इस पर रोक नहीं लगाती इसको रोक पाना मुस्किल है